पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद-वर्म-दर्शन पर्यन के पीछे के अन्यकार, न्याय तथा न्याय-वैशेषिक के अन्धकार सभी की दृष्टि वही है, बो कबाद के सूत्रों की है। प्रशस्तपाद ने शन्द की उत्पचि इस प्रकार बताई है:-"शन्द द्विविध है-वर्ण- लक्षण और ध्वनि-लक्षण । अकारादि वर्ण-लक्षण है; और शंखादि निमित्त ध्वनि-लक्षण है। वर्ण-लक्षण शब्द की उत्पत्ति इस प्रकार है-श्रात्मा और मन के संयोग से, स्मृति की अपेक्षा से, वर्णोच्चारण की इच्छा उत्पन्न होती है। तदनन्तर प्रयत्न होता है, जिससे प्रात्मा और वायु का संयोग होता है। इससे वायु में क्रिया उत्पन्न होती है, वह उर्वगमन कर कराठादि को अमिहत करती है । इससे स्थान और वायु के संयोग से स्थान और आकाश का संयोग होता है। इससे वर्ण की उत्पत्ति होती हैं। ध्वनि-लक्षण शब्द की उत्पत्ति इस प्रकार होती है- भेरी-दण्ड के संयोग से भेरी और श्राकाश का संयोग होता है । इससे ध्वन्यात्मक शन्द की उत्पत्ति होती है (प्रशस्तपाद, पृ० ६४५)।" "इस प्रकार द्रव्यविशेष के रूप में आकाश वह द्रव्य है, जिससे शन्द की अभिनिष्पत्ति होती है, अर्थात् यह उसका समवायिकारण है । नैयायिकों के अनुसार कारण तीन है--सम- वायि, असमवायि और निमित्त । शन्द की उत्पत्ति में प्रकाश समवायिकारण है, स्थान और अाकाश का संयोग असमवायिकारण है, और आभ्यन्तर वायु और स्थान का संयोग निमित्त- कारण है । ध्वन्यात्मक शब्द में भेरी पर दण्ड का प्रहार निमित्तकारण है, भेरी और श्राकाश का संयोग असमवायिकारण है, और अाकाश समवायिकारण है ।" ( प्रशस्तपाद). इस वास से यह प्रदर्शित होता है कि यद्यपि आकाश एक अदृश्य, अरूपी और अनन्त द्रव्य है, तथापि बह वायु के समान अन्य मूर्त रूपों से संयुक्त हो सकता है। इस द्रव्य का एक देश बो श्रवण-विवर संशक है, श्रोत्रेन्द्रिय कहलाता है । प्रकाश का शब्दगुणत्व प्राचीन काल से स्वीकार किया गया है। सांख्य न्याय और वैशेषिक इन दो में विशेष करते हैं। एक श्राकाश है जिसका शब्द गुण है, जिसके कारण शब्द की निष्पत्ति होती है । दूसरा दिक् द्रव्य है बो बाय जगत् को देशस्थ करता है। दूसरी ओर कणाद के सूत्रों में (२।२।१३) यद्यपि यह दो स्वतन्त्र द्रव्य है, तथापि कतिपय लिङ्ग प्रदर्शित करते हैं कि इन दोनों का एक द्रव्य माना जाता था, जो परस्पर मिन्न न थे, किन्तु कार्य-विशेष से जिनका नानात्व था। जिस प्रकार एक ही पुरुष अध्यापक और पुरोहित दोनों हो सकता है, उसी प्रकार कार्यविशेष से द्रव्य को प्रकाश और दिक् कहते हैं । यदि वह शब्द की निष्पत्ति करता है तो वह आकाश कहलाता है। यदि वह बाझ जगत् से अथों के देशस्थ होने का कारण है, तो इसे दिक् कहते हैं। इन्हें पीले के नैयायिक और वैशेषिक दो स्वतन्त्र द्रव्य मानते हैं। पूर्व और पीने के बौदों में अन्तर है। इसी प्रकार बहुधर्मवाद और विज्ञानवाद में भी अन्तर है। पाणि-माम्नाव में आकाश-अवकाश ( श्राकासो और श्रीकासो ) की गणना महाभूत या धातु में नहीं की गई है। यहां महाभूत चार ही है। सूत्रों में ऐसे वाक्य मिलते हैं, जिनसे