पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

असपक्ष सपक्ष से अम्म या उसके विरुद्ध अथवा सपक्ष का अभाव है । जब तक सपक्ष के स्वभाव का प्रभाव नहीं जाना बाता, तब तक सपक्ष से अन्य और उसके विरुद्ध की प्रतीति नहीं हो सकती । अतः सपक्षाभाव अन्य दो के अन्तर्गत है। त्रिकप किंग के तीन प्रकार त्रिरूप लिंग के तीन प्रकार है-अनुपलब्धि, स्वभाव और कार्य । अनुपबन्धि हेतु-अनुपलब्धि का प्रयोग इस प्रकार है:-उस देश-विशेष में घट नहीं है । हेनु--- उसका ज्ञान प्रतिपत्ता को नहीं होता यद्यपि शान का लक्षण अर्थात् हेतु-प्रत्यय- सामग्री प्राप्त है । शान का जनक घट भी है। और अन्य चतुरादि भी बनक हैं। दृश्य घट के अतिरिक्त प्रत्ययान्तर हैं और उनकी सनिधि है। जिसे हम अनुपलन्धि कहते हैं, वह ज्ञान का अभाव नहीं है किन्तु वस्तु है और उसफा शान है । दर्शननिवृत्तिमात्र स्वयं अनिश्चित होने से गमक नहीं है । किन्तु जब हम अनुपलन्धि की बात करते हैं, जिसका रूप दृश्य का अनुपलम्भ है, तो वचन सामथ्र्य से ही दृश्य-घट रहित प्रदेश और उनके ज्ञान का श्राशय होता है । अनुपलब्धि का अर्थ विविध प्रदेश और उनके ज्ञान का होना है । स्वभाव हेतु-जिस साध्य की विद्यमानता हेतु की अपनी सत्ता की ही अपेक्षा करती है, हेतुसत्ता व्यतिरिक्त किसी हेतु की अपेक्षा नहीं करती, उस साध्य में जो हेतु है वह स्वभाव है। प्रयोग-यह वृक्ष है ( साध्य ) । हेतु-क्योंकि यह शिंशपा है । इसका अर्थ यह है कि इसके लिए. वृत शन्द का व्यवहार हो सकता है, क्योंकि इसके लिए शिशपा का व्यवहार हो सकता है । अब यदि किसी मूल पुरुष को जो शिशपा का व्यवहार नहीं जानता और ऐसे देश में रहता है जहाँ प्रचुर शिंशपा है, उसे कोई व्यक्ति एक ऊँचा शिशा दिखलाकर बतावे कि यह वृक्ष है, तो वह जड़ पुरुष समझेगा कि शिंशपा का उच्चत्व वृक्ष-व्यवहार में निमित्त है । इसलिए. एक छोटा शिशपा देखकर वह समझेगा कि यह वृक्ष नहीं है । इस मूढ़ को बताना चाहिये कि प्रत्येक शिंशपा के लिए, वृक्ष का व्यवहार होता है। उच्चत्वादि वृत्त-व्यवहार के निमित नहीं है, किन्तु केवल शिशपात्वमात्र निमित्त है । कार्य हेत-यह हेतु कार्य है। प्रयोग यहां अग्नि है । हेतु-क्योंकि यहां धूम है । 'अग्नि' साध्य है; 'यहाँ धर्मों है; क्योंकि धूम है। हेतु है । कार्यकारणभाव की प्रतीति लोक में है । जहाँ कार्य है यहाँ कारण है और जहां कारण की विकलता है वहां कार्य के प्रभाव की प्रतीति होती है। अतः कार्य का लक्षण उक्त नहीं है। हेर-मेवाभारत यह कहा जा सकता है कि जब रूप तीन तो एक लिंग का होना अयुक्त है। यह भी कहा जा सकता है कि यदि यह तीन प्रकार भेद है तो प्रकार अनन्त है।