पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६९

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(५५) सौत्रान्तिक, विज्ञानवाद, शत्यवाद का विषय-परिचय और तुलना आदि विषय का विस्तारपूर्वक विवेचन है। इसके अतिरिक्त प्राचार्य वसुबन्धु के 'अभिधर्म कोश' का रोप, 'मार्य प्रसंग के महायान सूचालकार' का भाषानुवाद, हेनसांग की विजति मात्रता सिद्धि' के प्राचार पर विस्तृत निक्ध, प्राचार्य नागार्जुन की माध्यमिक कारिका' और प्राचार्य चन्द्रकीर्ति को प्रसन्नपदा पुचि का संक्षिस अनुवाद इस ग्रंय में समाविष्ट है। इस ग्रंथ का पांचवा खण्ड बेद न्याय पर लिखा गया है जिसमें श्राकाश-दिक् और काल पर एक महत्वपूर्ण अध्याय है। दूसरे अध्याय में बौद्ध प्रमाणों का और उसके अवान्तर भेदों का जैसा विवेचनापूर्ण और स्पष्ट निर्वचन किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। प्राचार्यची के परममित्र महामहोपाध्याय द्वार गोपीनाथ कविराव ने अपनी भूमिका में बौद्धतन्त्र पर लिखकर इस अन्य को बौखतन्त्र से भी पूर्ण कर दिया। इस प्रकार यह एकमात्र अन्य बौद्ध दर्शन के अध्ययन के लिए समस्त द्वार खोल देता है। अंग्रजी या फ्रेंच में इस विषय को कोई ऐसी पुस्तक नहीं है, जिसमें इतनी सामग्री एकत्र उपलब्ध हो । संस्कृत के अबतक के प्राप्त ग्रन्थों में भी इस प्रकार का कोई ग्रन्थ नहीं, जिससे समतो-धाराओं का परिचय प्राप्त हो । प्राचार्यजी ने कुछ विशिष्ट बौद्ध-अन्यों का अविकल अनुशद भी किया है। उसमें सर्वास्तिवाद का प्रसिद्ध मन्य वसुबन्धु रचित 'अभिधर्मकोश' है। यह ग्रन्थ ६.. कारिकामो का है। वसुबन्धु ने ही इन कारिकानों पर अपना भाष्य लिखा था। यह गन्य बड़े महत्व का इसलिए हुआ कि भाष्य में वसुबन्धु ने बगह बगह पर अपने पूर्ववर्ती विभिन्न प्राचार्यों का मत दे दिया है। बौद्ध-संसार पर इम ग्रन्थ का बड़ा प्रभाव है। इसके चीनी और तिम्पती अनुवाद उपलब्ध है, किन्तु मूल संस्कृत लुप्त हो गया था। लुई द ला वली पूर्स ने चीनी से फ्रेंच अनुवाद किया। अपने अनुवाद में पूर्जी ने घोर परिभम करके अपनी टिप्पणियों में समस्त त्रिपिटक, स्थविरवाद तथा अन्य बौद्ध-दार्शनिको का तुलनार्थ उद्धरण दे दिया है। इन टिप्पणियों ने 'अभिधर्मकोश' को बौद्ध दर्शन का और भी बृहत्तर कोश बना दिया है। प्राचार्यची ने १० जिल्टों के इस अन्य का अविकल अनुवाद किया है । इस ग्रन्थ के अनुवाद को सबसे बड़ी विशेषता बौददर्शन के भाषा-सम्बन्धी वातावरण की सुरक्षा है। इस हिन्दी अन्य का अपने मूल संस्कृत की ही भांति अशिथिल वाक्यावलियों में धाराप्रवाह पाठ किया था सकता है । भाषा के कारण यह बौद्ध-वातावरण से कहीं भी च्युत नहीं हुआ है। इस प्रन्य का अनुवाद प्राचार्य नरेन्द्रदेव के बौददर्शन के पाण्डित्य का बलन्त प्रमाण है। इस अन्य के अध्ययन के बिना बौद्धदर्शन का अध्ययन अत्यन्त अपूर्ण रहता है। प्राचार्षबी ने इसका अनुवाद पर बौद्ध दर्शन के प्रौढ़ अध्ययन का द्वार खोल दिया है । महापंडित श्री राहुल सांकृत्यायन के प्रयास से इस प्रन्थ का मूल संस्कृत माग भी उपलब्ध हो गया है। प्राचार्यत्री उस मूल से इस अन्य को मिलाकर चीनी अनुवाद और फ्रेंच अनुवाद की सम्भावित त्रुटियों का निराकरण कर लेना चाहते थे और वे अपनी विस्तृत भूमिका में पूसे के बाद इस क्षेत्र में हुए कार्यों