पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६९४

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बौद्ध-धम-वसन यह निर्विशेषण स्वभाव का प्रयोग है। अब हम सविशेषण स्वभाव का प्रयोग बताते हैं । (अन्वय) जो उत्पत्तिमत् है वह अनित्य है। (दृष्टान्त ) यथा घटादि। (पक्षधर्मत्व) शब्द उत्पत्तिमत् हैं । (साध्य) शन्द अनित्य हैं। अनुत्पन्न से इसकी व्यावृत्ति है। यहाँ वस्तु उत्पत्ति से विशिष्ट है। यह समारत धर्म है। श्रव कल्पित भेद से विशिष्ट स्वभाव का प्रयोग बताते हैं। (अन्यय) जो कृतक है वह अनित्य है। (दृष्टान्त) यथा घयादि। (पक्षधर्मत्व) शब्द कृतक है। (साध्य) शब्द अनित्य है। जो स्वभाव की निष्पत्ति के लिए अन्य कारणों के व्यापार की अपेक्षा करता है वह कृतक कहलाता है । इसलिए कृतक का स्वभाव व्यतिरिक्त विशेषण से विशिष्ट है। कार्य हेतु का साधम्र्यवान् प्रयोग यह वह है जहाँ हेतु कार्य है। (अन्वय) जहाँ धूम है वहां वह्नि है। (दृष्टान्त) यथा महानसादि में। (पक्षधमत्व) यहां धूम है। (माध्य) यहाँ अग्नि है। यह भी साधर्म्यवान् प्रयोग है। वैषम्मेवान प्रयोग (अन्वय) जो सत् है उसकी अवश्य उपलब्धि होती है, यदि यह उपलब्धि लक्षण- प्राप्त है। (दृष्टान्त) यथा नीलादि विशेष । (पक्षधर्मत्व) किन्तु इस प्रदेशविशेष में हम किसी दृश्य-घट को नहीं देखते, पर उपलब्धि लक्षण प्राप्त है। (साध्य) अतः यहाँ घट नहीं है। अब उस वैधय प्रयोग को कहेंगे जो स्वभाव हेतु है। जो नित्य है वह न सत् है, न उत्पत्तिमान् है और न कृतक है।