पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६९५

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पिंश अध्याय (हटान्त) यथा अाकाशादि। (पक्षधर्मल्व) किन्तु शब्द सत् है, उत्पत्तिमान् है, कृतक है । (साध्य) श्रतः शन्द' अनित्य है। अब कार्य हेतु का वैधम्र्य-प्रयोग बताते हैं । (व्यतिरेक) जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम भी नहीं है । (दृष्टान्त) यथा पुष्करिणी में। (पक्षधर्मत्व) किन्तु यहां धूम है। (साध्य) अतः यहां अग्नि है। यहां भी वह्नि का अभाव धमाभाव से व्याप्त बताया गया है। किन्तु “यहाँ धूम है" इससे व्यापक अर्थात् धूम के अभाव का अभाव उक्त है, अतः व्याप्य (अमि का श्रभाव) का भी अभाव है । और जब यहि के अभाव का निषेध है जो साध्यगति होती है। अनुमान प्रयोग के अंग मेवामिकों के प्रयोग के पांच अङ्ग है, क्योंकि प्रतिसापक्ष और निगमन साध्य यद्यपि एक ही हैं, तथापि भिन्न वचन दिखाए गए हैं और पक्षधर्मत्व दो बार आता है। पर्वत पर वहि है। क्योंकि वहां यथा महानस में। यह धूम पर्वत पर है। पर्वत पर वह्नि है। दिमाग ने प्रतिज्ञा पक्ष, निगमन = साध्य को निकाल दिया है तथा पक्षधर्मत्व को एक ही बार रखा है। अतः बौद्धन्याय के प्रयोग के दो ही अंग होते हैं, क्योंकि अन्वय और न्यतिरेक से एक ही बात उक्त होती है। बोरन्याय अनुमान प्रयोग १. जहां धूम है वहाँ बहि है, यथा महानस में, बहां दोनों अथवा बल में, वहां धूम नहीं है क्योंकि वहाँ अग्नि नहीं है। २. यहाँ धूम है जो अग्नि का लिंग है। जब हम उस दो प्रकार के प्रयोग का उप- योग करते है ( साधर्म्य और वैधम्य ) तो पक्ष था साध्य को निर्दिष्ट करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि साधन ( लिंग या हेतु ) साध्यधर्म में प्रतिबद्ध है और साधन की प्रविपत्ति तादात्म्य या तदुत्पत्ति से होती है। हम चिसप्रकार का भी प्रयोग क्यों न करें दोनों प्रस्थानों में साध्य एक ही है । अतएव पक्षनिर्देश अवश्यमेव होना चाहिये, ऐसा नहीं है। यदि यह प्रतीति हो कि साधन साध्यनियत है, तो हमको अन्वयवाक्य मालूम है। यदि हम किसी प्रदेशविशेष में