पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७०३

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विरामबाब श्राचार्य विनाग ने इस प्रकार के विरुद्ध को सिद्ध किया है। किन्तु धर्मकीर्ति ने इसका वर्णन नहीं किया । इसका कारण यह है कि इसका अन्य दो में अन्तर्भाव है । यह उनसे मिन्न नहीं हैं। उक्त और अनुक्क साध्य में भेद नहीं है। जब एक रूप प्रसिद्ध है, और दूसरा रूप संदिग्ध है तो अनेकान्तिक होता है। जब इन दोनों रूपों का विपर्यय निश्चित होता है, तो हेतु विरुद्ध होता है । इसका क्या प्राकार है ? यथा-एक वीतराग या सर्वच है ( साध्य)। हेतु क्योंकि उसमें वक्तृत्व है। जिस पुरुष में वक्तृत्व है, वह वीतराग या सर्वश है। यहाँ व्यतिरेक प्रसिद्ध है, और अन्वय संदिग्ध है। हमारा अनुभव सिद्ध करता है कि एक पुरुष बो रगवान् है और सर्वज नहीं है, वह कातृत्व शक्ति से रहित नहीं होता। अतः यह नहीं जाना जाता कि वक्तृत्व से सर्वच होता है या नहीं : यह अनेकान्तिक है। क्योंकि सर्वशत्व और वीतरागत्व अतीन्द्रिय है, अतः यह संदिग्ध है कि वक्तृत्व को इन्द्रियगम्य है, इनके साथ रहता है या नहीं। जब दोनों रूप सन्दिग्ध है, तब भी अनैकान्तिक है। अन्वय-व्यतिरेक रूप के संदिग्ध होने पर संशय हेतु होता है। बीवच्छरीर सात्मक है ( साध्य)। क्योंकि इसके प्राणादि श्राश्वासादि है ( हेतु)। इस वादी को मृत की प्रात्मा इष्ट नहीं है। यह असाधारण संशयहेतु है। इसमें दो हेतु दिखाते हैं। सात्मक और निरात्मक । इन दो को छोड़कर कोई तीसरी राशि नहीं है, जहाँ प्राणादि वर्तमान है । जो श्रात्मा के साथ वर्तमान है, वह सात्मक है। जिससे प्रारमा निष्कांत हो गया है, वह निरात्मक है । इन दो से अन्य कोई राशि नहीं है,जहाँ प्राणादि वस्तु धर्म वर्तमान हो । अतः यह संशयहेतु है । अन्य राशि का प्रभाव क्यों है । क्योंकि इन दो में सबका संग्रह है । यही संशयहेतु का कारण है । दूसरा संशयहेतु यह है कि इन दो राशियों में से किसी एक में भी वृत्ति का सद्भाव निश्चित नहीं है । इन दो राशियों को छोड़कर भी कोई राशि नहीं है, जहाँ प्राणादि वस्तुधर्म पाया जावे। अतः इतना ही शात है कि इन्हीं दो राशियों में से किसी में वर्तमान है। किन्तु विशेष के संबन्ध में वृत्तिनिश्चय नहीं है। कोई ऐसी वस्तु नहीं है विसमें सात्मकत्व या अनात्मकत्व निश्चित और प्रसिद्ध हो और जिसमें साथ ही साथ प्राणादि धर्म का अभाव सिद्ध हो । अतः अनेकान्तिक है। हमने असाधारण धर्म के अनैकान्तिकत्व में दो कारण बताये है। क्योंकि यह सिद्ध नहीं है कि जीपच्छरीरसंबन्धी प्राम्पादि सात्मक राशि या अनात्मक राशि से उसको व्यावृत्त करता है। इसलिए यह निश्चय करना कि किस राशि में