पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उसका निश्चित प्रभाव है, संभव नहीं है। प्राणादि का होना कुछ सिद्ध नहीं करता; न यही सिद्ध करता है कि प्रात्मा है, न यही सिद्ध करता है कि प्रात्मा का अभाव है। अतः बीवच्छरीर में श्रात्मा का भाव है या नहीं, प्राणादि लिंग द्वारा निश्चित नहीं हो सकता। इस प्रकार तीन हेत्वाभास है-असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक । यह तब होते है बब तीन रूपों में से किसी एक या दो दो रूप असिद्ध या संदिग्ध है। प्राचार्य दिङ्नाग ने एक और संशयहेतु बताया है। उसे विरुद्धाज्यभिचारि कहते हैं। किन्तु धर्मकीर्ति ने उसका उल्लेख नहीं किया है, क्योंकि वह अनुमान का विषय नहीं है । समात