पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७७

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को इसकी सूचना दे दी। एक दिन शाम को वह आये और सीधे मेरे मित्र के कमरे में गए । मेरे मित्र कामेव से निकाल दिये गये, किन्तु श्रीमती एनी बेसेएट ने उनको हिन्दू कालेज में भरती कर लिया। धीरे-धीरे हम में से कुछ का क्रान्तिकारियों से सम्बन्ध होने लगा। उस समय कुछ क्रान्तिकारियों का विचार था कि भाई० सी० एस० में शामिल होना चाहिये, ताकि क्रान्ति के समय हम जिले का शासन सम्भाल सकें। इस विचार से मेरे ४ साथी इङ्गलैण्ड गये। मैं भी सन् १९११ में जाना चाहता था, किन्तु माताजी की आशा न मिलने के कारण न जा सका। इधर सन् १९०७ में सूरत में फूट पड़ चुकी थी और कांग्रेस के गरम दल के लोग निकल आये थे। कन्वेशन बुलाकर कांग्रेस का विधान बदला गया। इसे गरम दल के लोग कन्वर्शन कांग्रेस कहते थे। गवर्नमेण्ट ने इस फूट से लाभ उटाकर गरम दल को छिन-भिन्न कर दिया । कई नेता जेल में डाल दिए गए। कुछ समय को प्रतिकूल देख भारत से बाहर चले गये और लन्दन, पेरिस, जिनेवा और बर्लिन में क्रांति के केन्द्र बनाने लगे और वहां से ही साहित्य प्रकाशित होता था। मेरे जो साथी विलायत पढ़ने गये थे, वह इस साहित्य को मेरे पास भेजा करते थे। श्री सावरकर की 'वार श्राफ इण्डियन इनडिपेण्डेन्स' की एक प्रति भी मेरे पास आयी थी। और मुझे बराबर हरदयाल का 'वन्दे मातरम्', बर्लिनका 'तलवार' और पेरिस का 'इण्डियन सोशलाजिस्ट' मिला करता था। मेरे दोस्तों में से एक सन् १६०८ की लड़ाई में जेल में बन्द कर दिये गये थे तथा अन्य दो केवल वैरिस्टर होकर लौट आये। मैंने सन् १९०८ के बाद से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाना छोड़ दिया, क्योंकि हम लोग गरम दल के साथ थे। यहां तक कि नत्र कांग्रेस का अधिवेशन प्रयाग में हुआ, तब भी हम उसमें नहीं गये । सन् १९९६ में जब कांग्रेम में दोनों दलों का मेल हुश्रा तब हम फिर कांग्रेस में श्रा गए। बी. ए. पास करने के बाद मेरे सामने यह प्रश्न आया कि मैं क्या करू। मैं कानन पढ़ना नहीं चाहता था, मैं प्राचीन इतिहास में गवेषणा करना चाहता था। म्योर कालेब में भी अच्छे-अच्छे अध्यापकों के सम्पर्क में आया । डाक्टर गंगानाथ झा की मुझपर बड़ी कृपा थी। बी. ए. में प्रोफेसर ब्राउन इतिहास पढ़ा । भारत के मध्ययुग का इतिहास वह बहुत अच्छा जानते थे। पढ़ाते भी अच्छा थे। उन्हीं के कारण मैंने इतिहास का विश्य लिया। बी.ए. पास कर मैं पुरातत्व पढ़ने काशी चला गया। वहां डाक्टर वेनिस और नारमन ऐसे सुयोग्य अध्यापक मिले । क्वींस कालेज में बो अंग्रेज अध्यापक आते थे, वह संस्कृत सीखने का प्रयत्न करते थे। डाक्टर वेनिस ऐसा पढ़ाने वाला कम होगा। नारमन साहब के प्रति भो मेरो बड़ी भवा थी। जब मैं जींस कालेज में था, तब वहां श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल से परिचय हुत्रा । विदेश से आने वाला साहित्य यह मुझसे जाया करते थे। उनके द्वारा मुझे क्रान्तिकारियों समाचार मिलते रहते थे। मेरी इन लोगों के साथ बड़ी सहानुभूति थी। किन्तु मैं डकैती श्रादि के सदा विकर था। मैं किसी भी क्रान्तिकारी दल का सदस्य न था। किंतु उनके कई नेताओं