पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७८

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से परिचय था। वे मुझपर विश्वास करते थे और समय समय सर मेरी सहायता भी लेते रहते ये। सन् १९१३ में जब मैंने एम. ए. पास किया तब मेरे घरवालों ने वकालत पढ़ने का श्राग्रह किया। मैं इस पेशे को पसन्द नहीं करता था, किन्तु जब पुरातत्व विभाग में स्थान न मिला, तब इस विचार से कि वकालत करते हुए मैं राजनीति में भाग ले सकुंगा, मैंने कानून पदा। सन् १९१५ में मैं एल.एल. बी. पास कर वकालत करने फैजाबाद पाया । मेरे विचार प्रयाग में परिपक्व हुए और वहीं मुझको एक नया जीवन मिला | इस नाते मेरा प्रयाग से एक प्रकार का प्राध्यात्मिक संबन्ध है। मेरे जीवन में सदा दो प्रवृत्तियों रही है-एक पढ़ने लिखने की ओर, दूसरी राजनीति की ओर । इन दोनों में संघर्घ रहता है । यदि दोनों की मुविधा एक साथ मिल जाती है तो मुझे बड़ा परितोष रहता है और यह सुविधा मुझे विद्यापीठ में मिली। इसी कारण वह मेरे जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा है जो विद्यापीठ की सेवा में व्यतीत हुआ और श्राज भी उसे मैं अपना कुटुंब समझता हूँ। सन् १९१४ में लोकमान्य मंडले जेल से रिहा होकर श्राए और अपने सहयोगियों को फिर से एकत्र करने लगे । श्रीमती बेसैरट का उनको सहयोग प्राप्त हुआ और होमरूल लीग की स्थापना हुई। सन् १९१६ में हमारे प्रांत में श्रीमती वैसेण्ट की लोग की स्थापना हुई । मैंने इस संबन्ध में लोकमान्य से बात की और उनकी लीग की एक शाखा फैजाबाद में खोलना चाहा, किन्तु उन्होंने यह कहकर मना किया कि दोनों के उद्देश्य एक ई, दो होने का कारण केवल इतना है कि कुछ लोग मेरे द्वारा कायम की गयी किसी संस्था में शरीक नहीं होना चाहते और कुछ लोग श्रीमती बेसेण्ट द्वारा स्थापित किसी स्थान में नहीं रहना चाहते । मैंने लीग की शाखा फैजाबाद में खोली और उसका मन्त्री चुना गया । इसकी ओर से प्रचार का कार्य होता था और समय समय पर सभाओं का आयोजन होता था। मेरा सबसे पहला भाषण अलीबन्धुओं की नजर-बन्दी का विरोध करने के लिए आमन्त्रित सभा में हुश्रा था। मैं बोलते हुए बहुत डरता था, किन्तु किसी प्रकार बोल गया और कुछ सज्जनों ने मेर भाषण की प्रशंसा की। इससे मेरा उत्साह बड़ा और फिर धीरे-धीरे संकोच दूर हो गया । मैं सोचता हूँ कि यदि मेरा पहला भाषण बिगड़ गया होता तो शायद मैं मापण देने का फिर साहस न करता। मैं लीग के साथ साथ कांग्रेस में भी था और बहुत जल्दी उसकी सब कमेटियों बिना प्रयत्न के पहुँच गया । महात्मा जी के राजनीतिक क्षेत्र में श्राने से धीरे धीरे कांग्रेस का रूप बदलने लगा। प्रारंभ में वह कई ऐसा हिस्सा नहीं लते थे, किन्तु सन् १९१६ से वह प्रमुख भाग लेने लगे। खिलाफत के प्रश्न को लेकर जब महामाजी ने श्रमहयोग आन्दोलन चलाना चाहा तो असहयोग के कार्यक्रम के संबन्ध में लोकमान्य से उनका मत भेद था। जून १९२० में काशी में ए. आई. सी. सी. की बैठक के समय में इस संबन्ध में लोकमान्य से