पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( € ) ही हुए हैं। इन मौकों पर घटनाएँ ऐसी हुई कि मुझे श्राना फैसला करने में कुछ देर न लगी। इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ। मेरे जीवन के कुछ ही वर्ष रह गए हैं। शरीर संपत्ति अच्छी नहीं है, किन्तु मन में अब भी उत्साह है। सदा अन्याय से लड़ते ही बीता। यह कोई छोटा काम नहीं है। स्वतंत्र भारत में इसकी और भी श्रावश्यकता है। अपनी जिन्दगी पर एक निगाह डालने से मालूम होता है कि जब मेरी अखि मुदेंगी, मुझे एक परितोष होगा कि को काम मैंने विद्यापीठ में किया है, वह स्थायी है । मैं कहा करता हूँ कि यही मेरी पूँनी है और इसी के आधार पर मेरा राजनीतिक कारोबार चलता है । यह सर्वथा सत्य है।*

  • 'मनवागी मई, सन् १९४७ ईसवी ।