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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ६७
 


हेमन्त ऋतु वर्णन
कवित्त

हाजिर हिमाम को किमाम देखि देखि दोक। न्हात बतरात मुसिक्यात छवि दंतमें।
धार धार भूषन बसन बनि बैठे बेस। देश देश दावे लेत शीत निज तंत में।
ग्वाल कवि दिनहूँ घटन लाग्यो पल पल। भोजन गरम भायो जग सब तंत में।
कंत कामिनी तें मिलि मिलिकैई कंत आज। लेत है अनंत री विनोद माहि मंत में॥४९॥

कवित्त

हरखि हिमंत में इकत कंत संग मिलि। मौज ले अनंत छविवंत तेरो गात है।
रवि की मयूख सों वियूख सी लगत मीठी। खेतन में ऊख को बहार दरसात है।
ग्वाल कवि तलप तुलाई की हितात त्यागी। आन लागी लगन बरफ भरी बात है।
दिन दिन घटन लग्यो है दिन तिन तिन। छिन छिन छिनदा सरस हति जात है॥५०॥

कवित्त

शीरे शीरे नीर भये नदिन के तीर तीर। शीरे भये चीर धरासीरी सब परि गई।
दशहू दिशे तें दिनरात लागी कुहरान। पोन सररान साफ तौर सी निकरि गई।
ग्वाल कवि ऐसे या हिमंत में न आये कंत। सो तुम्हें न दोष सलतंत ओरे बरि गई।
सूखि गये फूल भौंर झोर उड़ि गये मानो। काम की कमान की कमान सी उतरि गई॥५१॥

कवित्त

शीत की सवाई सी दिखाई परे दिनरात। खेतन में पात पात जमे जात सोरासें।
सरर सरर बरफान की पवन लागे। करर करर दंत बाजे झकझोरासें।
ग्वाल कवि कहे ऊन अंबरनि चोरे जहाँ। सूती बसनन तें तो वहे जात घोरा सें।
जोर जोर जंघन उदर पर घर घर। सिकुरि सिकरि नर होत है ककोरा सें॥५२॥

कवित्त

धीरे धीरे उतर हिमालय तें आइ तरें। नदीन के वारि छ्वे वे शीत सरसात है।
जोगी जती तपसी सभी की दुखदाइन है। अजब कसाइन है दयाना दिखात है।
ग्वाल कवि तूलकी न ऊनको सँवूर की न। माने ना दुशालनी की साफ सरसात है।
बर्फ की कतार है कि सार नोक दार है कि। प्यार ही अपार है सो पार भई जात है॥५३॥

कवित्त

बाहिर गये ते घर आवन लगे है लोग। घरके बसैयन पयानो कियो साफा सो।
ग्यानिन को ज्ञान अरु ध्यानिन को ध्यान मान। मानिन को मान फार्यो मृगमद नाफा सो।
ग्वाल कवि कहै प्याला बाला में दुहून ही में। सब ही ने जान्यो ठाक आनंद दूजाफा सो।
जोमदार जीवन को जोम को जगैया बड़ो। आयो अब जाड़ो जग करन जुराफा सो॥५४॥