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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ७१
 


सवैया


फाग की फेल करी मिली ग्वालन, छैल विशाल रसालन ऊपर।
लाल की लाल मुठी को गुलाल पर्यो डहि बाल के बालन ऊपर।
यों कवि ग्वाल करे उपमा सुखमा, रही छाय सु ख्यालन ऊपर।
पंख पसारि सुरंग सुवा उड्यो, डोले तमाल को डालन ऊपर॥७३॥

सवैया


फाग में राग की लाग दिली खिली आँख मिलामिली प्रानन बारें।
बालके ऊँचे उरोजन ऊपर लालदई पिचकारि कीधों सारे।
तें उचटो कवि ग्वाल तब तिहि की सुखम उपमाजु उचारे।
मानो उतंग उमंग भरे सु छुटे हक रंग फुहारे हजारे॥७४॥

सवैया


सुन्दरी आवे अंगारी चली भली भांति अदाय बतावत है।
श्री नन्दलाल चलावत कुंकुमे सूधे सफा सरसावत है।
ते लगें ऊंचे उरोजन में कवि ग्वाल प्रभा दरसावत है।
हास के हेतहि कुम्भन पे मनो मेन गुलेल चलावत है॥७५॥

सवैया


जाहि लगे सो भजे न अंगे वहाँत्री देई गिरे पै सके नहि ऊठे।
जो कहुं कोऊक कूदि चलेतो तहाँ बिच ले जहाँ रंग अनूठे।
त्यों कवि ग्वाल खिलाखिल खेल में खीझे खिले बिन खोरि में रठे।
मूळे गुलाल की बाल की यों पलें ज्यों चले मंत्र विशाल की मूठें ॥७६॥

सवैया


कैसे कलंक बचे दूपयाग में, झेलि है ग्वारिया भूरि बने।
भारि है फेंकि गुलाल की डारन, रेखें शरीर में पूरि बने।
यों कवि ग्वाल भिजोइहे रंग, भजा भज जातन दूर बने।
न्हाये बने जल जा बने, जमुना पर जाये जरूर बने॥७७॥

सवैया


आवत ही ब्रजनारी जहाँ पिचकारी बिहारी चलाई उताल में।
दौर के अंगना एक अचानक ले गह पोत पिछोरिया हाल में।
ढूंढ़ि थके कबि ग्वाल गुलाबन पाइ कहूँ वह राज के ख्याल में।
दे गुलचा वहो बाल मसाल सी जाय मिले है मसाल की माल में ॥७८॥