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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ७१
 


भ्रमरान्योक्ति

गहरे गुलाबन के खेत ते तजे अचेत। जाइजो कमल पें तौ कौन प्रतिबंध है।
सेवती न सेई ते न जान्यो कछु भेऊ अजो। चंपक तें चापो जहाँ हित को निबंध है।
ग्वाल कवि कहें क्यों बबूर के सुमन भ्रमे। बैठे तें छिदेंगी तेरी तम तन संध है।
पीरे पीरे देखि भयो तीरे तीरे याके अरे। मधुकर अंध यामें रस है न गंध है॥११६॥

गजान्योक्ति

बल में अपार देख्यो दल को सिंगार चारु। उथल पहार डारे, थल को न कोटी है।
पुष्ट-पुष्ट थंबन में पाये पग चार सुष्ट। पुच्छ पृष्ट पांसुरी हु तुष्ट बोटी बोटी है।
ग्वाल कवि जैसो कुंभ कान दंत तुंड तैसो। तैसी फूतकार और चिंतार अति मोटी है।
ऐरे गजराज और साज सब ठीक तेरे। एपें या दराज देह माँहि आँख छोटी है॥११७॥

उलूकाग्योक्ति

जाहिं ते विकास होत पदमिनि पुंजनि को। पहुँचे सुवास भाँति भाँति देवतान कौं।
जाहिं ते उदित होत उदित मुदित कोक। कोकी शोक ओक नाश करैं बिछुरान कौं।
ग्वाल कवि जाहिते उजेरो जग माँहि होय। हेरो परे अखिल बसेरो हरजान कौं।
जाही भासमान कै प्रकासमान होइ बेंतें। भाखत उलूक भयो रोग आसमान कौं॥११८॥

काकान्योक्ति

वाके चोंच चरन अरुन दोक सुनियत। याके मुखकारो पाय-नीले कहियत है।
वह मानसर को बसैया बिलसैया वर। यह नीच गैरहु लसैया लहियत है।
ग्वाल कवि वह मुकताहल चुनत नित। यह मंद वस्तु भाखे देखे दहियत है।
वह बोले मिष्ट यह दुष्ट करे काँइ काँइ। हंस को दिवान कहा काग चहियत है॥११९॥

कमलान्योक्ति

केतकी को केवड़ा को सेवती गुलाबन को। मधु को पिवैया ओ करेगा चंपा चौर है।
मालती पे माधवी पें मोद को मनैया महा। ठौर ठौर खुसबो की गहकत जोर है।
ग्वाल कवि सदा तें पुराननतें सुनी बात। रात कों रखत मूँद भौरें कंज झोर है।
अजब अनूठो अदभूत अरविंद यह। जाने दिन रात राख्यो मूदि भले भौंर है॥१२०॥

पयपानहारान्योक्ति

धन्य धन्य तोहि मोहि जानिकै अनाश्रित सों। कियो उपकार धरियातु चतुराई को।
घेर लायो गैयाँ एसी और के न आवे हाथ। पोंछि पुचकार दुही गेह चंचलाई को।
ग्वाल कवि कहे ओटि ओटि अति मीठो कियो। कहाँ लौं बखानों गुन रावरी भलाई को।
पूरि सबकाज अब करत अकाज काहे। प्याइबे कों ल्याये भलो बासन खटाई को॥१२१॥