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द्रगशतकम् : ९३
 


पहिले ही ये नैन है। बड़े नुकीले तोर।
तामें सुरमा नोक यह। करे दुनाली फोर॥७४॥
बरछी हू की अनियतें। तो द्रग अनी इजाद।
क्योंकि घायल हु चहत है। और बिंधन को स्वाद॥७५॥
नैन छबीले छल छके। छलत छलिन छित छोर।
छिय छिय छित्तरत छिनक में। छीनत चित बरजोर॥७६॥
खूबी तो द्रग खुलक की। करे खुसी में लीन।
खंजन खिसियाने रहे। खिन खिन होतें खीन॥७७॥
नजव नजर तू करत है। गजब नैन की कोर।
अजब विरह की अगिन में। गजब होत मन मोर॥७८॥
मृग नैनन से उड़ रहे। मृग मदहूँ[१] बिच ऐन।
भरे चौकड़ी मृगन सी। प्यारी तेरे नैन॥७९॥
और अंग साजे रहे। भूषन ते दिन रैन।
ये बिन भूषन हो दिपत। शशि मुखि तेरे नैन॥८०॥
पाँखें राखे तिनहु की। अभिलाखें रद होत।
नाखें साखें सुरिन की। ये आँखें जग जोत॥८१॥
ये मद लोचन रावरे। रोचन रंगे दिखात।
शोचन के मोचन महा। मन रोचन सरसात॥८२॥
जल छिर के जल केल में कैसे अरुन।
मीन केत के मीन मनु। कुसुम हौज लहरात॥८३॥
बैरिन[२] को यह रोत है। मारत है सब खून।
द्रग खूनी दिन रात कै। इन तें बचे कभून॥८४॥
संदीपन उनमाद कर। मोहन सोषन ऐन।
संतापन शर समर के। बसे बाल के नैन॥८५॥
मालति आम अशोक नित। अरुन नील अरविंद।
ये प्रसून शर समर के। तिय द्रग वास बसिंद॥८६॥
छीन लई बरछीन की। नोकें पैनी छीन।
दीन किये सर समर के। तिय द्रग अनी रंगीन॥८७॥
है न्यारी सब तियनतें। ये मनियारी आंख।
अजब गजब करि डारती। जो कहुँ होते पांख॥८८॥


  1. मूलपाठ :–– मदहु
  2. फैलीन।