पृष्ठ:भक्तभावन.pdf/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९८ : भक्तभावन
 

कवित्त

पानी पीयबे कों गज गयो हो गहकि कर। माइ ग्रस्यो ग्राहने अथाह बल भरकें।
जोर बहु पार्यो न टार्यो मयो ग्राह तब। दीन है पुकार्यो हरि हार्यो में तो लरिकें।
ग्वाल कवि सुनत सवारी तजि प्यारी तजि। धाये चित्त सारी तजि नांगे पाउँ ठरके।
जानी न परी है कब चक चक्रधर जूसों। चलि दल नक्र गयो कर चक्र धरके॥१८॥

कवित्त

देवन को दुःख दंद देवको को फंद कर्यो। कंस मति मंद को जमी है नींव काल की।
ब्रजवासी वृंद को भई जो बात ही पसंद। रूप की अमंद राशि खुलि परी ख्याल की।
ग्वाल कवि श्रुतिन को सो स्वच्छन्द भयो। मोहन बुलंद भयो मूरति रसाल की।
अद्भुत चन्द भयो जसुमति नन्द भयो। नन्द के अनन्द भयो जे कन्हैया लाल को॥१९॥

कवित्त

ब्रह्म आइ बाल भयो लोकपाल पाल भयो। देवन कृपाल भयो सुषमा को पाल है।
मुनि मन माल भयो राधा उरमाल भयो। रूप तिहुँ[१] लोक को सुताल भो विशाल है।
ग्वाल कवि गौवन को अद्भुत ग्वाल भयो। गोपिन को ख्याल नेह जाल भो रसाल है।
ब्रज इकताल भयो जसुदा के लाल भयो। लाल के भये तें भयो नंदमुख लाल है॥२०॥

कवित्त

आज ब्रज के नंद के भयो अनंद कंद नंद। वारो कोटि चंद ब्रजचंद बेसवारे पर।
षटमुख गजमुख पंचमुख लिये उमा। चौमुख औ भानु इन्द्र आये मौन मारे पर।
ग्वाल कवि कूदत लचत उचकत फेर। ख्यालन खचित[२] गावे चारहूँ किनारे पर।
मोर नचे मूसा नचे नन्दी नचे सिंघ नये। हंस नचे हय नचे गज नचे द्वारे पर॥२॥

इति शांतरस कवित्त

 

दीपावली के कवित्त

छाई छवि छित पें छहर छवि छैलन की। छम के छपाकर छटा सी बाल त्यारी पे।
उन्नत अनार अलगारन अगारन पें। आसमान तारे उठे ऊपर अगारी पे।
ग्वाल कवि जाहर जवाहर जगत जोर। जागत जुआरी जाम जाम जर जारी है।
दीप दीप दीपन की दीपति दवरि आइ। जंबू दीप दीपन में दिपत दीवारी पे॥२२॥


  1. मूलपाठ––तिहूँ
  2. खचित।