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१० : भक्तभावना
 

थे। किन्तु ग्वाल को शिक्षा यहाँ अधिक दिन तक न चल सकी।' ग्वाल की माता ग्वाल को लेकर अपने पितृगृह काशी चली गयी। वहाँ चार-पांच वर्षों तक ग्वाल ने बड़े मनोयोग पूर्वक संस्कृत के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन किया। काशी से लौटकर ग्वाल ने बरेली के खुशहालराय नामक कवि को काव्य-गुरु बनाया। बरेली में इनकी एक पाठशाला चलती थी, जिसमें कविगण शिक्षा पाते थे। ग्वाल ने इनको सर्वत्र सम्मान सहित स्मरण किया है तथा 'कवि मुकुट मणि' विशेषण के साथ स्पष्टतः गुरु घोषित किया है।

"श्री खुसाल कवि मुकुटमनि ताकरि सिष्य विकास।
दासी वृन्दा विपिन के श्री मथुरा सुखवास॥"

कविता काल

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने सं॰ १८७९ वि॰ से सं॰ १९१८ वि॰ तक ग्वाल का कविता काल माना है। अधिकांश विवान् यद्यपि इसी मत के पोषक है किन्तु डॉ॰ भगवान सहाय पचौरी के अनुसार आरम्भिक ग्रन्थों 'निम्बार्क स्वाम्यष्टक' और 'नेह निबाह' तथा परवर्ती रचना 'दगशतक' के उपलब्ध होने के पश्चात् दोनों ही तिथियां परिवर्तित हो जाती हैं। 'निम्बार्क स्वाम्यष्टक' एवं 'नेह निबाह' दोनों ही लघु ग्रन्थ भाव, भाषा और शैली को देखते हुए कवि के आरम्भिक काव्याभ्यासकाल की अत्यन्त सामान्य कोटि की कृतियाँ सिद्ध होती है। भले ही इनमें रचनाकाल का उल्लेख नहीं है परन्तु ये प्रत्येक दशा में 'यमुना लहरी' और 'रसिकानन्द' के पहले लिखी गयी हैं। अतः इनका कविताकाल १८७९ वि॰ से पूर्व ही मानना उचित है। भक्तभावन का संग्रह काल सं॰ १९१९ वि॰ है। इस प्रकार इनका कविताकाल सं॰ १८७९ वि॰ के पूर्व से सं॰ १९१९ वि॰ तक कहा जा सकता है।

राज्यश्र्य

काव्य रचना में पारंगत हो जाने पर ग्वाल देशाटन करते हुए नामा राज्य के महाराजा जसवंतसिंह की सेवा में उपस्थित हुए। महाराजा जसवंतसिंह काव्य प्रेमी और कवियों के आश्रयदाता होने के साथ ही साथ स्वयं भी एक अच्छे कवि थे। उन्होंने महाकवि ग्वाल को अपने दरबार में रख लिया। नाभा दरवार में उस समय जितने राज्याधित कवि थे उनमें वृन्दावन निवासी गोपालराय 'नबीन' प्रमुख थे; जिनसे म्बालजी का अच्छा परिचय था। बचपन में दोनों ने वृन्दावन में गोस्वामी दयानिधि की पाठशाला में एक साथ काम्यशिक्षा प्राप्त की थी। बहुत संभव है कि नवीनजी की प्रेरणा से ही ग्वाल नाभा दरबार में पहुंचे हों। रसिकानन्द प्रन्थ की रचना सं॰ १८७९ वि॰ में नाभा में हुई थी। इससे अनुमान होता है कि बाल सं॰ १८७९ वि॰ के पूर्व नाभा गये थे। अंतर्साक्ष्य के आधार पर सं॰ १८९१ वि॰ में 'कवि दपण' तथा सं॰ १८९३ वि॰ में 'हमीरों' की रचना अमृतसर में की गयी थो। कवि उस समय सरदार लहनासिंह का आश्रित था। इतिहासकार सैयद मुहम्मद लसीफ के अनुसार सरदार लहनासिंह देशराजसिंह मजीठिया का पुत्र था जो महाराजा रणजीतसिंह द्वारा पहाड़ी राज्य का शासक नियुक्त किया था। परन्तु वह अमृतसर में रहकर ही राजकाज करता था। लहनासिंह कई भाषाओं के शाता और ज्योतिष के अच्छे जानकार थे। लाहौर के महाराजा रणजीतसिंह (सं॰ १८३७–१८९६ वि॰) ने अल्पावस्था में ही सं॰ १८४७ वि॰