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१२ : भक्तभावन
 

सम्प्रदाय

ग्वाल किस सम्प्रदाय से जुड़े हुए थे तथा उनके इष्टदेव कौन थे? आदि प्रश्न विवादग्रस्त रहे हैं। ग्वाल के पिता राधावल्लभीय गोस्वामियों के राय थे। ग्वाल ने स्वयं राधावल्लभीय गोस्वामियों के गुरु दयानिधि से आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी। राधाकृष्ण और गोप-गोपियों सम्बन्धी भक्तिपरक साहित्य की रचना के कारण उनको कुछ विद्वान् वैष्णव अथवा राधावल्लभीय मानते हैं। 'निम्बार्क स्वाम्यष्टक' की रचना करने के कारण कुछ विद्वान् उन्हें निम्बार्कमतावलम्बी मानते हैं। जगदम्बा का भी ग्वाल ने पर्याप्त वर्णन किया है। इसलिए कुछ उन्हें शाक्त भी कहते हैं। वस्तुतः उनकी रचनाओं के सूक्ष्म अध्ययन से यह प्रमाणित होता है कि कवि किसी सम्प्रदाय विशेष का अनुगामी अथवा आग्रही न था। एक भक्त के रूप में उसने सभी देवी-देवताओं की स्तुति की है। सामान्य रूप से कवि शिवजी का उपासक था और जगदम्बा उनकी इष्टदेवी थी। ग्वाल का बनवाया हुआ शिव-जगदम्बा का ग्वालेश्वर मन्दिर इस मान्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

व्यक्तित्व

महाकवि ग्वाल की आकृति बड़ी भव्य और आकर्षक थी। उनका कद मझोला और वर्ण श्याम था। वे अपने मस्तक पर सदैव केसरिया अर्द्धचन्द्र लगाया करते थे और तन पर बंढ़िया अंगरखा तथा सिर पर केसरिया पाग पहिना करते थे। वे कंधे पर गर्मी व वर्षा में बनारसी सेला और जाड़े में काश्मीरी दुशाला धारण करते थे। उनकी प्रकृति ओजपूर्ण थी और वे स्वभाव से कुछ अक्खड़ थे। उन्हें अपने पांडित्य का अभिमान था। अतः किसी भी कवि पण्डित से शास्त्रार्थ करने को वे सदैव तैयार रहते थे। उन्होंने अपने 'कविदर्पण' ग्रन्य में अनेक कवियों के दोषों का कथन किया है। इसलिए समकालीन कवि समाज उनसे रुष्ट भी रहा करता था। फिर भी उनके पाण्डित्य और काव्य चमत्कार का सभी लोहा मानते थे। दूर दूर से कवि लोग ग्वाल से काव्य-शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इनके शिष्यों की भी एक लम्बी सूची है जिनमें से खड्गसिंह किशोर और साधुराम प्रसिद्ध कवि हुए हैं। कवि ग्वाल में आचार्यसुलभ स्वाभिमान था। उन्होंने अपने विस्तृत देशाटन के अनुभवों से व्यवहार कुशलता, वाग्विदग्धता और प्रत्युत्पन्नमतित्व को प्रखर और परिपक्व किया था जिससे हिन्दू होते हुए भी कवि मुसलमान और सिखों द्वारा प्रशंसित तथा पुरस्कृत हुआ था। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ग्वाल का व्यक्तित्व असाधारण था। मीनाई साहब के अनुसार ग्वाल की मृत्यु सं॰ १९२४ वि॰ में हुई थी।

रचनाएँ

ग्बालजी को मृत्यु के अनन्तर उनके तथाकथित भित्र नाथूलाल शाह ग्वाल की जमा की हुई समस्त संपत्ति हड़प गये और षड्यन्त्र कर ग्वाल की पुत्रवधू को भी हवेली से निकाल दिया। जब यह मामला अदालत में गया तो उक्त हवेली से ग्वालजी का सम्बन्ध सिद्ध न हो, इसलिए उसमें रखे हुए कागज-पत्रों में आग लगवा दी गयी जिससे कवि ग्वाल के कई ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियाँ तथा उनके संगृहीत अनेक दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ भी जलकर भस्म हो गये। ग्वालजी के समकालीन कवि नवनीत के वंशजों से ज्ञात हुआ कि कुछ अन्य नवनीत