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भूमिका : १३
 

जी ने जलते हुए मकान में घुस कर बचा लिये थे। इस प्रकार ग्वालजी के अभिन्न मित्र के कारण ही यशकीर्तिस्वरूप उनका साहित्य दुर्लभ हो गया।

अब तक विद्वानों ने महाकवि बाल के इकतीस प्रामाणिक ग्रन्थ स्वीकार किये है जिनमें रसरंग, कविदर्पण, प्रस्तार प्रकाश, साहित्यानन्द, रसिकानंद, हमीर हठ, विजय विनोद, नेह निबाह, वंशीवीसा, निम्बार्क स्वाम्यष्टक, गुरुपचासा, इश्क लहर दरयाव आदि इनकी मुख्य रचनाएँ हैं। इनकी अन्तिम रचना 'भक्तभावन' हैं। 'भक्तभावन' ग्वाल की भक्ति-परक रचनाओं का संग्रह है जिसका संकलन स्वयं कवि ने सं॰ १९१९ वि॰ में मथुरा में किया था। हस्तलिखित प्रति में इसका उल्लेख इस प्रकार किया गया है।

'तिनके चरनांबुजन को, करि साष्टांग प्रनाम।
ग्रन्थ फुटकरन को करत, एक ग्रन्थ अभिराम।
बंदी विप्रसु ग्वाल कवि, श्री मथुरा सुखधाम।
'भक्तभावन' जु ग्रन्थ को, धर्यो बुद्धि बल नाम।
संवत निधि ससि निधि ससी, मास बखान।
सितपख दुनिया रवि विषै, प्रगट्यौ ग्रंथ सुजान।'

हस्तलिखित प्रति और प्रतिलिपिकार

सुप्रसिद्ध परवर्ती रीतिकालीन कवि ग्वाल द्वारा विरचित 'भक्तभावन' की हस्तलिखित प्रति महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित शोधयात्राओं में गुजरात के शोधक, विद्वान, कवि एवं आचार्य गोविन्द गिल्लाभाई के निजी संग्रह से बड़े यत्नपूर्वक प्राप्त हुई है। सम्प्रति यह प्रति महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या-मन्दिर के हस्तलिखित विभाग में सुरक्षित है। वास्तव में 'भक्तभावन' महाकवि ग्वाल का कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ न होकर अनेक भनिप्रधान मुक्तक ग्रन्यों का संग्रह है जिसे स्वयं कवि ग्वाल ने अपने जीवन के अन्तिम दशक में किया था। सम्भवतः भक्तिप्रधान रचनाओं का संकलन होने के कारण ही ग्वाल ने इसका नामकरण 'भक्तभावन' किया था।

प्रस्तुत हस्तलिखित प्रति के प्रतिलिपिकार गुजरात के प्रसिद्ध कवि गोविन्द गिल्लाभाई हैं जिन्होंने स्वयं हिन्दी भाषा में अनेक ग्रन्थों का प्रणयन करके हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाया है। इसको मूल प्रति उन्हें मथुरा निवासी ग्वाल के समकालीन कवि नवनीत चतुर्वेदी से प्राप्त हुई थी। इसका उल्लेख हस्तलिखित प्रति के अन्त में अंकित 'पुष्पिका' में इस प्रकार किया गया है: "विक्रम संवत् १९५३ का माघ वदी १० शुक्रवार के दिन श्री सिहोर में गोविन्द गिलाभाई ने यह ग्रन्थ मथुरा से कवि नवनीत जी की पास से मंगाय के उन प्रति पर से यह प्रति स्वार्थे स्वहस्ते लिखके पूरी की है।"

डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी के पास भी 'भक्तभावन' की प्रतिलिपि है। यह प्रतिलिपि उन्होंने कवि नवनीत के पास की हस्तलिखित प्रति से की है। उनके अनुसार कवि नवनीत के पास की हस्तलिखित प्रति स्याही, कागज तथा लिखावट की दृष्टि से स्वयं ग्वाल लिखित है। हमारा अनुमान है कि गोविन्द गिल्लाभाई तथा डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी दोनों ने ही