कवि नवनीत के पास उपलब्ध हस्तलिखित प्रति पर से प्रतिलिपि की है। अतएव दोनों प्रतिलिपियों में विशेष अन्तर की सम्भावना नहीं है। इस दृष्टि से प्रस्तुत हस्तलिखित प्रतिलिपि की प्रामाणिकता असंदिग्ध रूप से स्वीकार की जा सकती है। खेद है कि हमें प्रयास करने के बाद भी डॉ॰ पचौरी के पासवाली सम्पूर्ण प्रतिलिपि प्राप्त नहीं हो सकी।
यह प्रतिलिपि एक सौ दो पूर्ण साइज के पृष्ठों में लिखी हुई है। परिशिष्ट में ग्वाल कृत नेह निबाह, बंशी वीसा तथा कुब्जाष्टक पृथक्-पृथक रूप से दिये हुए हैं। परिशिष्ट को मिलाकर कुल पत्र संख्या एक सौ सोलह है। लिखावट अत्यन्त स्वच्छ एवं यथासंभव वतनी के दोर्षों से मुक्त। इसमें सोलह छोटे-छोटे ग्रन्थ पृथक्-पृथक् नामोल्लेख सहित संगृहीत हैं। प्रत्येक ग्रन्थ को छन्द क्रमसंख्या एक से आरम्भ की गयी है और अन्त में ग्रन्थ 'सम्पूर्ण' का भी उल्लेख किया गया है जिससे इनके पृथक्करण की समस्या भी भलीभांति समाधान पा जाती है। संगृहीत ग्रन्थ निम्नलिखित है––
१. यमुनालहरी––छन्द संख्या १०८ कवित्त, ५ दोहे, कुल मिलाकर ११३ छन्द। पत्र संख्या १ से २१ तक सम्पूर्ण।
२. श्रीकृष्ण को नखसिख––छन्द संख्या १ से ६५ तक। पत्र संख्या २१ से ३२ तक, सम्पूर्ण।
३. गोपी पचीसी––छन्द संख्या १ से २५ तक। पत्र संख्या ३३ से ३७ तक, सम्पूर्ण।
४. राधाषाष्टक––छन्द संख्या १ वे ८ तक। पत्र संख्या ३७ से ३८ तक, सम्पूर्ण।
५. कृष्णाटक––छन्द संख्या १ से ८ तक। पत्र संख्या ३९ से ४० सक, सम्पूर्ण।
६. रामाष्टक––छन्द संख्या १ से ८ तक। पत्र संख्या ४० से ४१ तक, सम्पूर्ण।
७. गंगास्तुति––छन्द संख्या १ से १५ तक। पत्र संख्या ४२ से ४५ तक, सम्पूर्ण।
८. दशमहाविद्यान को स्तुति––छन्द संख्या १ से १२ तक। पत्र संख्या ४५ से ४७ तक, सम्पूर्ण।
९. ज्वालाष्टक––छन्द संख्या १ से ८ तक। पत्र संख्या ४८ से ५० तक, सम्पूर्ण।
१०. प्रथम गणेशाष्टक––छन्द संख्या १ से ८ तक। पत्र संख्या ५१ से ५३ तक, सम्पूर्ण।
११. द्वितीय गणेशाष्टक––छन्द संख्या १ से ८ तक पत्र संख्या ५४ से ५५ तक, सम्पूर्ण।
१२. शिवावि देवतान को स्तुति––छन्द संख्या १ से ३४ तक। पत्र संख्या ५५ से ६० तक, सम्पूर्ण।
१३. षट्पतु वर्णन तथा अन्योक्ति––छन्द संख्या १ से १२४ तक। पत्र संख्या ६० से ८३ तक, सम्पूर्ण।
१४. प्रस्तावक नीति कवित––छन्द संख्या १से ४० तक। पत्र संख्या ८३ से ९० सक, सम्पूर्ण।