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भूमिका : २१
 

वन्दना में ये कवित्त लिखे होंगे। भाषा की दृष्टि से भी ये उनके प्रारम्भिक काल की रचनाएँ ही ज्ञात होती हैं।

१२. शिवादि देवतान की स्तुति––इसमें शिवजी, हनुमान, भैरों, सूर्य, त्रिवेणी, स्वामी कातिकेय, ब्रह्मा, इन्द्र, काली, मनसा, भवानी, नैनादेवी आदि अनेक देवी-देवताओं की स्तुति की गयी है। साथ ही मधुपुरी, वृन्दावन, काशी, त्रिवेणी आदि के माहात्म्य का भी वर्णन किया गया है। त्रिवेणी का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है––

दारिद दरैनी सुभ संपति भरैनी भूर,
पूरन सरेनी जसभक्ति रंग रैनी है।
चैनी जमराज की अचैनी जी जरैनी जोर,
बोर देनी कागद गुपित्र के गरैनी है।
ग्वाल कवि न्हैयत तरैनी वितरैनी तेंज,
मुक्ति परसैनी तिहुंपुर दरसैनी है।
पापन कों तापन कों छेनी अति पैनी ऐनी,
सुरगन सैनी सुख दैनी ये त्रिवेणी है।

१३. षट्ऋतु तथा अन्योक्ति वर्णन––ग्रन्थ में रचना तिथि का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है किन्तु षट्ऋतु वर्णन के अनेक छन्द रसिकानन्द (१८७९ वि॰) रसरंग, (१९०४ वि॰), साहित्यानन्द (१९०५ वि॰) तथा बलवीर विनोद (१९०२ वि॰) में उपलब्ध होते हैं। अतएव समष्ट है कि सं॰ १८७१ वि॰ से १९०५ वि॰ के मध्य फुटकर रूप से षट्ऋतु के छन्द लिखे गये होंगे किन्तु भक्तभावन में ये अविकल रूप से संगृहीत किये गये हैं।" इसमें षट्ऋतुओं का बड़ा ही वैविध्यपूर्ण और सुन्दर चित्रण किया गया है। यहाँ एक उदाहरण प्रस्तुत है जिसमें ग्वाल ने बसंत की बहार का अत्यन्त मनोहारी चित्र अंकित किया है––

सरसों के खेत की बिछायत बसंत बनी,
तामें खड़ी चाँदनी बसंती रतिकन्त की।
सोने के पलंग पर बसन बसंती वेस;
सोनजुही माले हाले हिय हुलसंत की।
ग्वाल कवि प्यारो पुखराजन को प्यालो पूरि,
प्यावत प्रिया को करे बात बिलसंत की।
राग में बसंत बाग बाग में बसंत फूल्यो,
लाग में बसंत क्या बहार है बसंत की।

ग्रन्थ के अन्त में लगभग चौबीस छन्दों में तोता, गुलाब, मालती, कदम्ब, बागवान, भौरा, हाथी, उलूक, कौआ, हंस, कमल आदि पर अन्योक्तियाँ प्रस्तुत की गयी हैं। अधिकतर वर्णन उद्दीपन रूप में ही किया गया। किन्तु कहीं-कहीं स्वतन्त्र रूप से भी प्रकृति का चित्रण सुन्दर बन पड़ा है।

१४. प्रस्तावक नीति कवित––ये छन्द भी समय-समय पर लिखे गये प्रतीत होते है।