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भूमिका : २५
 

का महत्त्व असंदिग्ध रूप से स्वीकार किया जा सकता है। दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि किसी भी अन्य रीतिकालीन आचार्य का भक्ति-सम्बन्धी इस प्रकार का विशाल एवं समृद्ध संग्रह उपलब्ध नहीं होता है। यद्यपि स्फुट रूप से तो सभी की एकाधिक रचनाएं प्राप्त होती है। अतएव इस दृष्टि से भी इसका महत्त्व निश्चय ही अप्रतिम एवं बेजोड़ है। वस्तुतः 'भक्त-भावन' भक्तिपरक मुक्तक ग्रन्थों की एक ऐसी अटूट एवं अविच्छिन्न माला है जिसमें भाव, कल्पना और अनुभूतियों के साथ कविकौशल के अनेक नवीन एवं मौलिक कुसुम अनुस्यूत तथा संग्रथित हैं।

११. अन्त में सम्पादन के सम्बन्ध में मैं यही कहना चाहूँगी कि प्राप्त हस्तलिखित प्रति को अविकल रूप में ही सम्पादित करने का हमारा प्रयास रहा है। प्रतिलिपिकार गोविन्द गिल्लाभाई ने गुजराती भाषा के प्रभाव के कारण मात्राओं में कहीं-कहीं ह्रस्व को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व कर दिया है। अतएव ऐसे स्थलों पर हमने ब्रजभाषा को प्रकृति के अनुसार उनमें सुधार करने की छूट अवश्य ली है। एक ही प्रति के आधार पर सम्पादन होने के कारण पाठभेद या पाठसंशोधन का प्रश्न तो विशेष रूप से उपस्थित ही नहीं होता है। भविष्य में यदि हमें कभी अन्य प्रतियां उपलब्ध हो सकी तो पाठभेद तथा पाठसंशोधन की समस्या पर अवश्य ही विचार किया जा सकेगा। संप्रति तो हमारा उद्देश्य इन कृतियों के अनुशीलन के माध्यम से सांग निरूपक आचार्य ग्वाल के विशेष रूप से भक्त-कवि-स्वरूप को उद्घाटित करना ही रहा है। एवमस्तु।

सन्दर्भ

१. विशाल भारत–वर्ष २, अंक १, अप्रैल १९२९।
२. महाकवि ग्वाल–व्यक्तित्व एवं कृतित्व-डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी, पृ॰ १५८ से उद्धृत।
३. हिन्दी साहित्य का इतिहास–आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पृ॰ २९८।
४. महाकवि ग्वाल–व्यक्तित्व एवं कृतित्व–डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी, पृ॰ १५९।
५. हिस्ट्री ऑफ द पंजाब–सैयद मुहम्मद लतीफ, पृ॰ ४५८।
६. पंजाब प्रान्तीय हिन्दी साहित्य का इतिहास–पं॰ चन्द्रकान्त बाली, पृ॰ १९९।
७. सिख इतिहास–डॉ॰ देशराज, पृ॰ ४०६-४०७।
८. ग्वाल कवि-प्रभुदयाल मित्तल, पृ॰ ८३।
९. वही, पृ॰ ५०।
१०. रीतिकवियों की मौलिक देन–डॉ. किशोरीलाल गुप्त, पृ॰ १५६।
११. महाकवि ग्वाल के ग्रन्थ–डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी, ब्रजभारती, मथुरा।
१२. हिन्दी साहित्य का इतिहास–आ॰ रामचन्द्र शुक्ल, पृ॰ २७२।
१३. महाकवि ग्वाल–व्यक्तित्व एवं कृतित्व-डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी, पृ॰ १९१।
१४. वही, पृ॰ २००।
१५. ग्वाल कवि–प्रभुदयाल मित्तल, पृ॰ ८३।
१६. महाकवि ग्वाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व–डॉ॰ भगवानसहाय पचौरी, पृ॰ २३६।