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श्री गणेशाय नमः

अथ श्री भक्तभावन ग्रंथ प्रारंभ

मंगलाचरण-दोहा


वेद पुरानजु शास्त्र सब सो जाही के रूप।
हंस वाहिनी बनि घर श्री सरस्वती अनूप।

ग्रंथ प्रस्तावना


तिनके चरनांबुजन कों। करि साष्टांग प्रनाम।
ग्रंथ फुटकरन को करत। एक ग्रंथ अभिराम।

कवि विषे


बंदी विप्रसु ग्वाल कवि। श्री मथुरा सुख धाम।
भक्तभावन जु ग्रंथ को। धर्यो बुद्धिबल नाम।

ग्रंथ संवत


संवत निधि शशि निधि शशी। मास अषाढ़ बखान।
सित पख-द्वितिया-रवि-विषे। प्रगट्यो ग्रंथ सुजान।

अथ श्री यमुना लहरी ग्रंप प्रारंभ


मंगलाचरण–दोहा


श्री वृषभान कुमारिका। त्रिभुवन तारन नाम।
शीश नवावत ग्वाल कवि सिद्धि कीजिये काम॥१॥

कवि विषे


वासी[१] वृंदा विपिन के। श्री मथुरा सुखवास।
श्री जगदंबा दई हमें। कविता विमल विकास॥२॥
विदित[२] विप्र वंदी विशद। बरने व्यास पुरान।
ताकुल सेवाराम को। सुत कवि ग्वाल सुजान॥३॥

यमुना स्तुति


कवित्त


शोभा के सदम लखि होत है अदमसम। पदम पदम पर परम लता के इद।
देखें नख दामिनी घने दुरी अकामिनी है। जामिनी जुन्हया की जरै जलसता के मद।
ग्वालकवि ललित छलानतें कलित कल। वलित सुगंधन ते वेस मुदता के नद।
वंदन अखंड भुज दंड जुग जोरै करौं। बरद उमंड मारतंड तनया के वद।।१॥


  1. मूलपाठ :––. वासि
  2. वीदीत।