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२ : भक्तभावन
 

कवित्त


जित जित जाती जमुना को जोर धारें जुरि। तित तित ही में स्यामता की बहु कुंज होत।
जित जित प्रबल प्रवाहन के शोर सुने। पाप तिन तिनके पटासे खाइ लुंज होत।
ग्वाल-कवि तेरे तोय ऊपर विमान आय। जाय इन्दरासन अनन्दन की गुंज होत।
तेरी येक बिंदु के किनूका सो हजार चारु। ताकी कोर कोर कन्हैया के पुंज होत।२।

कवित्त


जोगी। एक जमना तिहारो जित नाम लेत। तितमें लसीलें जस देशन में चिरजात।
आय आय विबुध विमानन में बैठे वेश। धन्य धन्य भाखे दिव वीथिन में घिर जात।
ग्वाल कवि रवि औ रथीश शशि नामें लखें। होत न अथैयन अथैयन के गिर जात।
कहर कलेश को कटासे करि जात ढेर। पापन के पुंज में पय से फेर फिरिजात।३।

कवित्त


कँधों दुति द्रोपती को दमकत दीपन में। कैधों नीलगिरि जन पांति परमा की है।
कैंधों तमोगुन की जुरी है जोर शशि। किधों फूलें नील कंजन की अवली रमा की है।
ग्लाल कवि कालिका कृपालिका की लेहन के। कैंधों घटा घोर भूमि उतरी सुधा की है।
केंधों शेश स्याम की करी है घनस्याम सेज। केंधों तेज तरल तरंग जमुना की है।४।

कवित्त


कैंधौं लाजवर्तकी शिला है सुमिला है भली। कैंधौं स्याम पाट की बिछात छबि जाकी है।
कैंधों भ्रमरावली भ्रमत भूरि भायन सों। केंधों राहु किरन अछेह फबि जाकी है।
ग्वाल कवि कैधौ केश काली के विराट रूप। कैंधों रोमराजी वरनत कवि जाकी है।
कैंधों नंदनंदन अनंत वपुधारे तन्त। केंधों तेज तरल तरंग रवि जाकी है।५।

कवित्त


तरल तिहारी रवि तनया तरंगैं तेज। शोर घन घोरन घटासें करिबों करें।
अविधि सुरापी दोह पापिन के तुंग तारि। अखिल विमानन वटा से करिबो करें।
ग्वालकवि कौन कहनावत कहौं में अब। देवन के पुंज पलटा से करिबो करें।
शहर जमेंश के पटा से दे कटासी करि। कहर कले से चोपटा से करिबो करें।६।

कवित्त


कीनी सत संगतन पंगत जिवाई कभू। रंगत अदेह की भुलायो देह साजतें।
एक दिन तरुनी पराई मिलिबे के हेत! भाख्यो रविजात मिलौं रजनी समाज तें।
ग्वालकवि त्यों ही भुज चार को प्रचार होय। आये घिरि देवता विमानन विराजतें।
चित्र लै विचित्र चित्रगुप्त कहे हाय हाय। बाज हम आये ऐसें लिखिबे के काज तें।७।