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४ : भक्तभावन
 

कवित्त


भानु नंदनी के तट नीके रज राशिन में। दासिन के तरवा तरे में परो झौर झौर।
कूर अकुलीनन के भीलन के पाछैं, पाछैं। आछैं जे कुसीलन के पंगु गहाँ दौर दौर।
ग्वालकवि ये तो फरि देख्यो पै न देख्यो कछु। लेख्यो होनहार जो लिख्यो हैं विधि और और।
मुकति विचारी में जुवारी क्यों न भारी भाय। मारी सील तारी फिरो रब्बारी भई ठोर ठौर॥१४॥

कवित्त


स्याम रंग रंगत तें स्यामे रंग होत सुने। जमुना जरूर ही जुरी है जोर जंगी तू।
देत है कन्हैयन उठाय पीत अंबरन। लकुट विशाल देत सुन्दर सुरंगी तू।
ग्वाल कवि गोरी गिरि जासी पटरानो देत। देत मोर चन्द्रिका चमकित कलंगी तू,
संगी करे ग्वालन उमंगी मति चंगी करे। करि बहुरंगी फेर करत त्रिभंगी तू॥१५॥

कवित्त


रावरी तरंगन को जमुना प्रसंग पायो। अंग-अंग धोये तऊ करै अलसाइबो।
पापिन के कुल में प्रतापी महापापी भयो। तापी तीन ताप को न जाने हुलसाइबो।
ग्वालकवि ताही को तिहारे पितु आये लेन। फेर पति आये मति मोद सरसाइबो।
भान चाहे भान लोक भीतर बसाइबे को। कान्ह चाहे कान्ह लोक भीतर बसाइबो॥१६॥

कवित्त


माली एक बाग में खुसाली जुत सोवे तहाँ। फूलन वहाली मूल नीरन छका छकी।
आई अंध धुंधही अंध्यारी करि आँधी तहाँ। एक तरु दोष गिरते व्है धकाधकी।
ग्वालकवि त्यों ही वह आगिकें बुलाये पार। जमुना सकेगो इमि कहिकें तकातकी!
माथे भई चन्द्रिका लकुट निज हाथे भई। साथे भई गोपिका[१] दिखैयन चकाचकी॥१७॥

कवित्त


जात चतुरानन सुजान आन मेरी यह। करियो[२] इते में तू करैया है उमंग को।
रेतन की राशि जो करे तो करि नीकी भाँति। जमुना के जल को थल के प्रसंग को!
ग्वाल कवि सुमन लता जो करे तोहू तहां। मीनग्रह जो करे सुवाही जलसंग को।
मनुज करे तो है सलाह यह तोकों वीर। करियो मलाह ताकी तरल तरंग को॥१८॥

कवित


गेह में लगे है तिय नेह में पगे है पूर। लोभ में जगे है ओ अदेह तेह समुना।
कुटिल कुढंगन में कूरन के संगन में। छके रति रंगन में नंगन ते कमुना।
ग्वाल कवि भनत गरूर भरे अति पूर। जानियें जरूर जिन्हें काहु कोजु ममुना।
लहर करै तें हरि लोक में सहर करै। लहर तिहारी के लरवैया मात जमुना॥१९॥


  1. गोपीका
  2. करीयो।