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८ : भक्तभावन
 

कवित्त


जुद्ध करि मोसों अति क्रुद्ध करि कायर तू। है बडो अशुद्ध तो विरुद्ध बुद्ध टारोगों।
जो लो मैंन बोलत हों डोलत हो सो ही आय। बोलत हों गरलसु में कैसो विसारौंगो।
ग्वालकवि भाखै[१] भागि जायगो कहाँ तू नीच। भीच खपची में कमची ले तोहिं तारोंगों।
एरे पाप पापी सब देखन को सापी तोहि। जमुना के जल में अकाल मारि डारोंगों॥३८॥

कवित्त


पातिक हरैया सुनी तरनि तनैया तोहि। गैया कामना की सी मनोरथ भरैया तूं।
देवन बसैया करै शेषनाग सैया करे। नैया करे धर्म की अधर्म से धरैया तूं।
ग्वाल कवि कहे जग मैया तू लसैया बेस। मोहन बनै या छबि छोरन छवैया तूं।
भैया जमराज को जलूसन जरैया जोर। जीवन जिवैया जोति जबर जगैया तूं॥३९॥

कवित्त


कामना की गैयासी मनोरथ भरेया भलैं। अखिल अंगारन में संपति डरैया तूं।
दुरित दरैया विदरैया बदराहन की। जुलुम जरैया टेक जमकी टरेया तूं।
ग्वाल कवि भाखे छबि छोरन छवैया वेश। सुख में समैया दुख हिय के हरैया तूं।
शैया करे शेष की सु जोतिन जगैया जोर। कान्ह की करैया मैया तरनि तनैया तूं॥४०॥

कवित्त


तरनि तनूजा तेज तज्जुब तिहारो तक्यो। तुले ना तुलान पें अतुलता धनेरी है।
सांपिन सी सरस सतावे जमदूतन कों। पापिन[२] को तापिन कों चिंतामनि हेरी है।
ग्वाल कवि करम कुरेखन मों टारे फारे। अघन विदारे प्रन पारिबे की ढेरी है।
छबिन छटा को उछटा की करे लोकन में। करन कटान को ये पटाकी धार तेरी है॥४१॥

कवित्त


तर न तनैया तनु तोय में तिहारे आय। तापी तीन ताप को तनक तन धोय जात।
तेज होत वपुष सुमुख सुखमातें सने। दुख दहलाते होत सुखन सलोप जात।
ग्वाल कवि संपति समोय जात सदमन। पदमन मीन सो तु जकजग जोय जात।
हालाहाल हाजिर हजूर में सुरेश होत। बेश होत बानी बनवारी भेश होय जात॥४२॥

कवित्त


दमुना मिलत जमदूतन के देहबिवे। दौरि देहरी में आय होत बे अकामे है।
जमुना सु चित्रगुप्त हू की ना चलाँको चले। चित्र भयो लखिकें वित्रित बसुधा में है।
तमुना रहत जाके सदन सु और पास। अमित प्रकाश भने ग्वाल कवि तामे है
कमुना गोविन्द तेज समुना त्रिलोक जाको। न्हात जमुना में तेन लेत जमुना में है॥४३॥


  1. मूलपाठ :––भागे,
  2. पापीन।