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१२ : भक्तभावन
 

कवित्त


कुल छमता के सत्व गुन की सताके बीच। होत वपुता के गुन कलम लता के है।
पूर प्रभुता के कामधेनु की भत्ता के फेर। नाँ हि समता के तीन लोक वीरता के है।
ग्वाल कवि ताके शिरमौर-मनि ताके रूप। दिव्य वनिता के नहि होत करता के है।
पुंज देवता के सजे सुजस पताके ताके। नैक ही के तामे बाँह सूरज सुता के है॥६२॥

कवित्त


मेरु मूठ मंजुल मँजी है मजबूत फेर। मारतंड नन्दनी न मूँद तेग तारा है।
वृन्दावन सिकिल सँवारी मथुरा में सान। कांढ़ी प्राग म्यानतें प्रसिद्ध ही प्रचारा है।
ग्वाल कवि सुखदा गहें जे शरनागत को। काटे पाप दंगल उदंगल अपारा है।
केती इक धारा होत कितनी दुधारा होत। थर थर धावनी लखी अनंतधारा है॥६३॥

कवित्त


मोहन बन्दूकची सुमेरु बन्दूक बोधि। कीनी देवतान की सु गज गजरबाने में।
मारतंड नन्दनी सु गोली अनतोलो भरि। वृन्दावन विदित बरूद सरसाने में।
ग्वाल कवि मथुरा चमकदार पथरी दे। गोकुल अनूप कल तुरत दबाने में।
साज प्रागराज सो दराज ही अवाज होत। छूटत ही लागे जाय पातिक निसाने में॥६४॥

कवित्त


औरन के तेज तुल जात है तुलान बिन। तेरो तेज जमुना तुलान न तुलाइये।
औरन के गुनकी सु गनती गने तें होत। तेरे गुन गनकी न गनती गनाइयें।
ग्वाल कवि अमित प्रवाहन की थाह होत। रावरे प्रवाह को न थाह दरसाइयें।
पारावार पारहू को पाराबार पाइयत। तेरे वारपार को न पारावार पाइयें॥६५॥

कवित्त


गावे गुन नारद न पावे पार सनकादि। बन्दीजन हारे हरी मेधा मंजु शेस की।
दरस किये ते अति हरष सरस होत। परस पुनोत होत पदवी सुरेश की।
ग्वाल कवि महिमा कहि न परे काहू विधि। बैठे रहि गहिमा दसा है यों गनेश की।
तारक जमेश की विदारक कलेश की है। तारक हमेश की है तनया दिनेश की॥६६॥

कवित्त


काटि के किनारे किये कोरन करारे पुंज। कुंजन के कूल उठे लहर प्रभा की है।
चद्दर चहूँधा चारु चेटक चितौन चित्त। ्री्र्री् भोर भैल फेर पंगत पताकी है।
ग्वाल कवि मोदमत्त मच्छ कच्छ वहे। वृच्छ घूम जब होत घन धूम बरसा की है।
जोर जल जाल जोर किये जर जंगलन। जोय जोय जाहर जलूस जमुना को है॥६७॥