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यमुना लहरी : १५
 

कवित्त


जोय जमुनाको जमु नाको मुंदवाये देत। जमना सके जो इमि बोल्ये अंधकूप वह।
करी भव फांसी भव गाँसी बिन हाँसी करै। भव की मिली है भवरासी सो अनूप वह।
ग्वाल कवि हो में हरि मद हरि हार सो है। रोज हरि पाई सित हरिपात भूप वह।
हरि सों प्रकाश मुख हरि सी मृदुलताई। लेपहरि भाल में भयोई हरिरूप वह॥८०॥

कवित्त


देखिके दिवाकर तनैया को सु पातकीने। घक्कहि दिवाकर जमे ते उछलो गयो।
मार मद सो हे मार सम मन मोहे मंजु। पीवत है मार मार पच्छ सिरलों गयो।
ग्वाल कवि कुण्डल खगाकृत खगासन ह्वै। खग के बरन खन संकट दलो गयो।
जोवे जाहि धाम जाके धामतें अनेक धाम। ह्वै के दिव्य धाम हरि धाम को चलो गयो॥८१॥

अब नवरस बर्ननं

तत्र प्रथम–शृंगार रसबर्ननं यथा

कवित्त


देव मारतंड को तनूजा को तरङ्गे ताकि। ह्वै गयो गोविन्द अरविन्द वदनीन में।
पाई प्रान प्यारी अनियारी उजियारी दुसि। प्रीति अधिकारी[१] मिलि गावे तानबीन में।
ग्वाल कवि प्रेमी पुरहूत पानि पानदान। पीवत पियूष बड़े प्याले जे चुनीन में।
झुमि झुमि झुके झंझरीन में विझुके झंपि। झिलमिल झांई की झमक झंझरीन में॥८२॥

कवित्त


दीखत दिवाकर को अमित अछेह तेज। ताकी तनया को तेज तातें अधिकारी कों।
ताकी लखि लहर लहर करै पातकी सु। बैठ्यो सुरसंग ह्वै सरूप गिरधारी को।
ग्वाल कवि पाई पटरानी बसु आसपास। तामें सरसानी एक रूप सुखकारी को।
चूमें मुख प्यारे को रसीली प्रान प्यारी पगि। प्यारे प्रान नाथ मुख चूमें प्रान प्यारी को॥८३॥

कवित्त–हास्यरस


तात की न मात की करी न सेवा भ्रात की। ऐसो महा पातकी सु जमुना अह्नायो है।
ह्वैके भुज चार चारु कंचन विमान चढ्यो। शंख चक्र गदा पद्म सुन्दर सुहायो है।
ग्वाल कवि भाखे यो सिधार्यो हरिलोक बीच। बीच मल्यो बैरिन को जूथ मग छायो है।
एके संग सबही हसन लागे ताकों देख। कौन है कहाँ ते बायो कौन रूप पायो है॥८४॥


  1. मूलपाठ : अधीकारि।