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२२ : भक्तभावन
 

कवित-चरन नख वर्णन


पानिप परस मंजु मुक्ता सरमाय। डूबे सिंधु अगम अदम गम कोर के।
तारे तेज वारे तेन कारे निसि तारे परे। दिवस हरारे रहे दुरि मुख मोर के।
ग्वाल कवि फवि फवि छवि जो छपा कर की। दवि दवि दूवरे कुमुद जिमि भोर के।
यातें जग परख नख मख मेन पचि सब। चख लख पद नख नवल किशोर के॥११॥

चरन वर्णन


कोहर में बिंब में बंधूकन में विद्रुम में। जावक जपा में, वह किसले अमंद के।
लाल में, गुलाल में, गहर गुल लालन में। लाली गुन पैक सो न तूल है सु छंद के।
ग्वाल कवि ललित लुनाई कोमलाई जैसी। तेसी है न कंज बीच ओ गुलाब फंद के।
नंद के करन, दुख द्वंद के हरन धन। असरन-सरन चरन नंद नंद के॥१२॥

कवित्त


मुनि जन मन अधार के अगार गुर काली नाम सीस के सिंगार चार साज के।
वेद औ पुरान शास्त्र तत्वन के तत्व तेज। सत्व को प्रमत्व दत्व मुकति समाज के।
'ग्वाल कवि' कमल कुलिस ध्वज अंकुसतें चिन्हित विचित्र रूप दूसरे निराज के।
शोभा के जहाज राज लोकन के ताज राज। पद जुगराज ब्रजराज के॥१३॥

चरन भूषन वर्णन


कैधों मंजु मुख के मंडन बनाये विधि। कंधों फल कल कुण्डल अनूप सुखमाके है।
कैधों जग मोहन के मंत्र के अधार पूरे। कैधौं मृदुध्वनि के वपुष छवि छाके है।
ग्वाल कवि द्वार ही तें आगम कहैया किधों। मातहिय कमल लिखैया किधौं ताके है।
कै| हेमकार कुल तारन निदान नीके। नूपुर नवल किधौं नंद के ललाके है॥१४॥

जंघा वर्णन


कैधौं विधि बागवान अधिक उतायल में। कदली उलटि धरे सीमा शोभ माल की।
कैधौं भुज उदर हृदय शीश मंदिर के। उदित अधार धरे मंदी जोति जाल की।
ग्वाल कवि कंधों सुरराज वन नंदनते। ओंथी धरि दीनी है सरो महा सुढाल की।
केधों केलि काल में कला निधि मुखीन कोये। मोदकी करनवारी जंघे नंदलाल की॥१५॥

नितम्ब वर्णन


केधों अघ उरघ शरीर मध्य भाग ताके करन प्रसिद्ध बुर्ज बने है सम्हाल के।
कैचों लंक भूपति विराजिवे के रंग गूढ़े। मजेदार जड़े नीलमनि जाल के।
ग्वाल कवि कधों कामिनी की केलिसमय में। तवसे मधुर मृदुदेन हारे ताल के।
कैधों पृष्ठ भाग को प्रभा के वृद्धि करिबे को। विधि ने बनाये हैं नितंब नंदलाल के॥१६॥