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नखशिख : २३
 

लंक वर्णन


गोल है अमोल है अजूबाहे अनुपम है। छाम है न थूल है न माफिक पसंद को।
रंग रंग रंग की रंगीली अति चटकीली। काछनी विराजे वर वानिक बुलंद को।
ग्वाल कवि चामी कर कोंधनी जड़ाऊ जोर। पोही स्याम पाट में समूह शोभ फंद को
ललित लुनाई सुरि समकत लूमि लूमि। लह लह लहकत लंक व्रजचंद को॥१७॥

काछनी वर्णन


मंजु मखमलतें मुलायम है मजेदार। साटन तें चिकनी चहूँधा एकतारे की।
रंगी रंग रंग के सुरंगन तें तेजदार। त्रोटन की ओट औ किनारी कोरकारे की।
ग्वाल कवि मोतिन की झालरे झिलत जामें। फौदनी खिलत वेश बादले पसारे की।
कटि कमनीयतें करत कल केलि ऐसी! काछनी कलानिधि कलासी कान्ह प्यारे की॥१८॥

लंक भूषन (करषनी) वर्णन


वामाकर कामी ढाल ढाल के तपाई तेज। बहुरि है सुनार सुख दया की।
हीरन ते मोतिन तें लालन ते पन्नन ते। जड़ित जड़ाक जोति जोतिन जितेया को।
ग्वाल कवि विविध बनाई बेल मीनन की। स्याम मखतूल में गुंथी है छवि छैया की।
कैसे कहे कौन कहि हारे है कवीश कुल। केसी कमनीय कटि कौंधनी कन्हैया की॥१९॥

नाभि वर्णन


अधिक अमोल गोल गहरी अडोल जैसी। तैसी है अझोल औ अतोल सुखभारी की।
तीस तीन कोटि देवतान के नहाइबे को। पुषकर पूरन की परभा पसारी की।
ग्वाल कवि चतुर निधान चतुरानन के। तात की उप सज कुई है उज्यारी की।
नोके नीकें नैनन नवीनता निहारीयत। नूरतें न मूंद नाभि नवल विहारी क॥२०॥

त्रिबलो वर्णन


कैंधों नाभि कूप कमनीय के किनारे पर। राधे ने बनाई है नसेनी नेह पासे की।
कैंधों तजवीज तेज तोल लोन लोकन की। तीन ही बनाई सीम अतुल मवासे की।
ग्वाल कवि कंधों पात बंधन कियो है दाम। ताकि परि गई है तकीरें रूपरासें की।
कैंधों महाराज मन मोहन मुकुन्द जू के। तन में तकाई परे त्रिबली तमासे की॥२१॥

रोमराजी वर्णन


कैंधों पुरहूत[१] के परम पारचे को पान। तापे मृगमद की सुधारी धार ताजी है।
कैंधों निज स्वामी की भगति रसराज करी। रेख रूप ले वस्यो शरीर शोभ साजी है।
ग्वाल कवि कैधों नाभि कूप कमनीय पर। पाट स्याम डोर फैली दूर लौं दराजी है।
कैंधों रूप राशि राधावर के उदर पर। राजी राजी ह्वै करि विराजी रोमराजी[२]है॥२२॥


  1. पुरहुत
  2. रोमराजिं