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२४ : भक्तभावन
 

उबर वर्णन


कैंधों पुरहूत की प्रकर्ष पनवारी जाके। परम पवित्र पान पूरन पसंद है।
कैंधों मन लाय के बनायो मैन रेजा एक। मखमल माखन सो मृदुल मुकुर है।
ग्वाल कवि कैधों एक पात अरवी कौ नीको। अजब अनूठो औ अनूपम असर है।
कैंधों विधि विटप विचित्रता के आलवाल। बानिक विशाल नंदलाल को उदर है॥२३॥

हृदय वर्णन


कैधों दल दीनन के दुःख को दलनहारी। दीरष दया जो ताको पितु है प्रकाज को।
कैधों दैत्य मारन निवारन अमर उर। ताके चितवन को ठिकानो गुन साज को।
ग्वाल कवि कैंधो भाव जोगो की गुफा है। ह्वै रह्यो प्रकाश तामें तेज के समाज को।
कैंधों बर बिमल कमल दल हूते मृदु। मंजुल हृदे है श्री मुकंद महाराज को॥२४॥

भृगुलता वर्णन


कैधों विप्र पायन पवित्र के पुआइबे कों। कारन विचित्र ब्रह्मांड के पसारे।
कंधों परिपूरन परम प्रभुता को पद। ताके पायबे को हैं सुपंजा भाव भारे में।
ग्वाल कवि केधों छवि ताकी छमता को इद। ताको है निशान तीन वर्ण के अखारे में।
कंधों सुख सुखमाको सुन्दर सता है भरी। भृगु की लता है कान्ह उर के किनारे॥२५॥

बक्षस्थल-चिन्ह वर्णन


पावे कौन पार पार दोसत अपार जाको। ऐसे पारावार की सुता है बैसबारी की।
सदन सुधा को कलानिधि सो सुधार्यो बधु। सुखमा खवासी करे हाजिर हुस्यारी की।
ग्वाल कवि जे तो जग जोवे जोतिजाको जोर। जननी मनंद की गुरयानी है उज्यारी की।
ऐसी रमारानी महारानी ठकुरानी ठोक। स्याम उर चिन्ह ह्र विराजे दुति न्यारी की॥२६॥

वनमा वर्णन


फूले फूल फूल तिन्हे फूल फूल लोने तोड़। रंग रंग की सुरंगत निहारी है।
सूत सूत रेसम रंगीन में रसाइन सों। गहकि गहकि गूंधी गूंघ को नियारी है।
ग्वाल कवि सौरभ समुद्र तें निकारी मनो। ललित लुनाई कोमलाई लहराई है।
बानिक विशाल वारों मोतिन की भाल जापें। ऐसी वनमाल नंदलाल उरषारी है॥२७॥

कर वर्णन


संपति सुजस सुत आयु औ पराक्रम के। लक्षन विलक्षन परे है रेखजाल के।
गुर गिरिराज धारि लेवे के अधार पाछे। मानसुरराज के न सैयाकंस भाल के।
ग्वाल कवि अज की सहायक खैया मूर। भोजन करैया सुख दैया गोपग्वाल के।
कंज है न कोमल गुलाब में न गुन ऐसें। जैसे जुग पानि है सुजान श्री गुपाल के॥२८॥