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२६ : भक्तभावन
 

कंठ भूषन वर्णन


कारन करन कुल कलस कलानिधि को। नंद को कुंवर कान्ह करना को कंद है।
ताके ग्रीव गोप ओप गहनो जग्यो है जोर। जड़ित बड़ाव जात रूप में बुलंद है।
ग्वाल कवि हीरन की पाँखुरी पहुंषा चारु। ताके बीच लागयो एक नीलम अमंद है।
मानो स्याम कंबु पाय पूजि के चढ़ायो काम। पुण्डरीक तापें आइ बैठ्यो अलिनंद है॥३६॥

पीठ–बोटी वर्णन


खेले खोरि साँकरी में बौकरी चितोन चारु। ताकरी पे काँकरी चलाह छवि छाये है।
फूलन के फौंदना फिरावत है फूल-फूल। उलमि उलमि फांद फांदत सुहाये है।
ग्वाल कवि सावरे सुजान जू की पीठि पर। हेम शबिया के झुण्ड चोटी में लगाये है।
मानो नीलमनि की शिला पें रविजा की धार। तापें मदनेश फूल चम्पा के चढ़ाये है॥३७॥

चितुक वर्णन


कैधों स्याम मनि की बनाई है विरंचि बेस। गिदुक खिलौना कामदेव सुखदानि को।
कैधों श्री किशोरी के सनेह नभमारग में। धायेब को गुटका असित अखरानि को।
ग्वाल कवि कैधों एक विकसित इंदोवर। ताके तरे शालिग्राम प्रगट कलानिको।
कैधों चारु चमक चमकत चहुँदिसतें। चेन को चबूतरा चिबुक चक्र
पानिकों॥३८॥

अधर वर्णन


कोहर से बिंब से कहें तों आदि पीरे हरे। पकि पकि पाछे तें सुरंग रंग धारो है।
विद्रुम से वरने तो जल के परस सेत। बन्धु जीव कहे तो संकट करारो है।
ग्वाल कवि वे तो है अनित्य में अरुन नित्य। सुधा तें सरस रस तामे आनि ढारो है।
यातें महराज बजराज सिरताज आज। अधर तिहारो सो तिहारो ही निहारो है॥३९॥

कवित्त


प्रीत परिपूरन पवर्ग तें पियूख भरे। पतन करैया पोर विरहा झरक की।
सुन्दर सरस अति रवनो कपोलन की। ताप हुनि करे सीरे ठण्ड ज्यों बरफ की।
ग्वाल कवि रावरो अधर मन मोहनजू। सुखमा बढ़ाये बन्धु सधर तरफ की।
मानह लखारी रामदेव जू के लिखवे को। धरी स्याम कानद पे सरप सिंगरफ की॥४०॥

दशन वर्णन


कैधों पंचबान बाजवान ने बनाई बेस। कुन्द कलिकान की अवलि सरसात है।
कैधों मुख चार चारु जोहरी बिचार करि। होरे के कनीन की बनाई पूर पांत है।
ग्वाल कवि कैघों तके तारागन तेज वारे। तिनको कतारे भांत भांत ही सुहात है।
कैधों दीह दमक दमकत दिसान दौरि। दसन दमोदर के हाँस में दिखात है॥४१॥