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नखशिख : २७
 

कवित्त


कैधों पके दाड़िम के बीज परिपूरन है। परम पवित्र प्रभापुञ्ज लमकत है।
कैधों भूमि सुत के अनेक जारे तेजवारे। बाँधिके कतारें झलाझल झमकत है।
ग्वाल कवि कैधों पंचवान जौहरी की जोर। ललित ललाई लिये मनि चमकत है।
कैधों वृषभानु की लड़ैती प्रान प्रीतम के। पान पीक पाजे पे दसन दमकत है॥४२॥

कवित्त


कैधों ओज अद्भूत अनेक अंग धारिकरि। आभा आनि बैठी कहो कौन पें नखी परें।
कैधों बेस बीजुरी की कौंधन कलासी होत। ऐसे यह मेघन की मेघ पें रखी परें।
ग्वाल कवि कैधों शर्द राका के कलानिधि की। कौमुदी हतो सोना चकोर चखी परें।
कैधों स्याम सुन्दर सुजान की हंसन माहि। दसन अनूपन की लसन लखी परे॥४३॥

रसना वर्णन


कैधों बट पल्लव परम परमाते पूर। तामें मुकताहल की भालदुति न्यारी की।
कैधों कोकनद को अमल दल भल एक। तापें चेंहू कोर कली कुन्द उजियारी की।
ग्वाल कवि कैधों बाक बानी के विराजिबे को। आसन अनूपकोर होरन हजारी की।
कैधों दशनावलि में रसना रसीली अति। राजे रमनीय ऐसी रसिक बिहारी की॥४४॥

कवित्त


वह तो असित रूप लसितन नेको ताको। यह तो ललित छबि सहित दिखाय है।
पाहन कठोर वह कोमल अमल यह। वह तो अचल यह चलन सुभाय है।
ग्वाल कवि वातें जातरूप की जंचाई होत। याते षटरस के सवाद जाने जाय है।
नंद महाराज के सपूत ब्रजराज जू की। रसना कसौटी पर ये गुन सिवाय है।४५।

मुख सुवास वर्णन


पारिजात जातहू न नरगिस छात हू न। चंपक फुलात हूँ न सरसिज ताब में।
माधवी न मालती में, जूही में न जोयत में। केतको न केवड़ा की लपट सिताब में।
ग्वाल कवि ललित लवंग में न बेलन में। चंदन कपूर में न केसर हिताब में।
सेवती गुलाब में न, अतर अदाव में न। जैसी है सुवास कान्ह मुख-महताब में॥४६॥

हास्य वर्णन


कैधों श्री महीप मदनेश जू को एक सर। नील उत्तपल जाको विमल विकास है।
कैधों नंद जसुधा की जोद चहुँ कोर माँहि। भरिबे को विविध विनोद को विलास है
ग्वाल कवि कैधों पीन पंगत प्रवीनन की। तामें प्रेम पूरिबे को परम प्रकास है।
कैधों ब्रजनाथ नाथ श्रीबिहारी लालजू को। विदित विचित्र होत मंद मंद हास है॥४७॥