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२८ : भक्तभावन
 

कवित्त


कैधों शोक शंका गास क्रोध औ उदासी आरि। ताके मारिबे को मंजु कारन बुलंद है।
कैधों चित्त चूर को करन हार चिंता ताहि। तुरत उचाटिबे को इलम अमंद है।
ग्वाल कवि कैधों मात जसुदा औ नंदजू के। मन करखन को सघन फांस फंद है।
कैधों बनितान के वसीकरन करिबे कों। बाँके श्री बिहारी जू को हास मंद मंद है॥४८॥

कवित्त


मासा है न एको जाके चिंता चहुँ ओरन में। नंद श्रीजसोमति के दिल को दिलासा है।
लासा है सनेह कोन छूटे चेप चपकन। त्रास तूल तुंगन को करत निरासा है।
रासा है रतन रस रंगन को ग्वाल कवि। रिस सी बटेर के विनासिबे को वासा है।
वासा है विनोद को मवासा है सुगंधन को। हाँसा है गुविंद को त्रिलोक को तमासा है॥४९॥

नासिका वर्णन


केते कवि कीरसी कहत कमनीय[१] याकों। केते कहे छवि तिल फूल के वदन की।
दोऊ में न कोऊ तूल एक वंक सूल सम। दूजी में न गंध है मलिंद मरदन की।
ग्वाल कवि यह तो सुढार औ सुगंध कोस। को राके बखान शोभ शोभा के सदन की।
नीलकंज कलिकासी नित ही निहारीयत। नासिका न मूंदनी की नंद के नंदन की॥५०॥

कपोल वर्णन


कैधों नीलमनि के सुमंडल बनाय राखे। कैधों दल दीखे नील कमल विशाल के।
कैधों गल गेहूँआ[२] धरे है लोल रेसम के कैधों जग दृष्टि थिरा चौंतरे सुढाल के।
ग्वालकवि कैधों प्रेम हेम की कसोटी सोहे। कैधों न्यारे ब न्यारे है कि नील ताल के।
कैधों स्याम धन के अदोल है अबोल ठौना। कैधों अनमोल है कपोल नंदलाल के॥५१॥

कर्ण (कान) वर्णन


कैचों श्री महीप मन जू के चोबदार चारु। शब्द शिरदारन की अर्ज के करन है।
कैधों शंबरारि के सरोज नील सरसाये। तामे गज पुञ्जन को पहुंचे करन है।
ग्वाल कवि केधों तपसीन की गुफा के द्वार। मंजु महारावदार कलित करन है।
कैधों कल कुण्डल की कांति के करन वारे। नंद के दुलारे कान्ह रावरे करन है॥५२॥

कर्ण भूवन वर्णन


शेष सनकादिक महेस व्यास देव जू लौं। गावत अनंत गुन ग्यान के पसारे में।
विधि के विचार हू में माया है अपार जाकी। कोस के सम्हार चढ़ि मोह अनियारे।
ग्वाल कवि कुण्डल जड़ाऊ जोर कानन में। जेवदे रहे हैं जसुमति के दुलारे में।
मानो नील कंज को कलीन में विराजे आय। साजे जुग रूप सूर सैल के अखारे पें॥५३॥


  1. मूलपाठ––कमनिय,
  2. गेहुँआ‌।