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नखशिख : २९
 

नेत्र वर्णन


मीन मृग खंजन खिस्यान भरे मैन बान। अधिक गिलान भरे कंज फल ताल के।
राधिका छबीली की छहर छवि छाक भरे। छैलताके छोर भरे भरे छबि जाल के।
ग्वाल कवि आन भरे सान भरे तान भरे। कछु अलसान भरे भरेमान भाल के।
लाज भरे लाग भरे लोभ भरे शोभ भरे। लाली भरे लाड़ भरे लोचन हैं लाल के॥५४॥

भृकुटी वर्णन


कैधों रमनीय रूप ऊपर वकारी वेस। कीनी महाराज कामदेव बलवंत की।
कैधों परिपूरन पियूष की पियालिन पें। बैठे अहिनंद करि वक्रताइ कंत की।
ग्वाल कवि कैधों द्रग द्वारे है बहारदार। तोप महराव स्याम मीनातें लसंत की।
कैधों सताके है नतेरा है होत जोहे रासी। सोहे मन मोहे वक्र भौहें भगवंत की॥५५॥

भाल वर्णन


पाटी नीलमनि की सी विधि ने बनाई बेस। ता इरिवरत्व रेख जगमग्यो जाल है।
अंगराज चंदन की खौरि को अधार अंग। सौरभ अपार ही को तखत विशाल है।
ग्वाल कवि आकृति अनूपम लखाई परे। मिलत कछूक शशि अरघ रसाल है।
भूरि भाल भाल को सु भूपति भलाई भर्यो। भान को भवन भगवंत जू को भाल है॥५६॥

भाल खौरि वर्णन


कैधों चारु चामीकर तारतें खचित एक। पाटी नीलमनि की बनाई विधि नाग पर।
कैधों बेल अमर अग्नि रही जालवारी। इन्दीवर दलभज मृदुता के बाग पर।
ग्वाल कवि कैधों वृषभान नंदनी को दुति। लपटि रही है लखि स्यामता मदाग पर।
कैंधों अंग राग को रही है जाग खौरी खासी। रसिक गुविंदजू तिहारे भाल भाग पर॥५७॥

मुख मंडल वर्णन


जाके आगे आइबे कों मुकुर मुकुर जाय। भयो बेउकर पातें सह्यो दारा दुःख को।
रूप हू को रूप के तो रूपे जो रति को भरि। मंडल अनूप है अनंत अति सुख को।
ग्वाल कवि मंजुल मवासो मंत्र मोहिवे को। जंत्र जग जोहिये कों मालिक वपुष को।
कंजन की आकर कहा करि सकेगी सरि चाकर सो चन्द ब्रजचन्द तेरे मुख को॥५८॥

केश वर्णन


कैधों रूप तात पें सिवाल जाल जोइयत। आसित विशाल कामदेव जू के प्यारे है।
कैघों मखतूल नील तारन के पुञ्ज पूरे। कोमल अमल नील कंजहूँ ते भारे है।
ग्वाल कवि कैधों चार चौर गुज लख वारे। भौर से भुंकातें अपूरव निहारे है।
कैधों शोम सौरभ सरवारे नेह डारे वारे। प्यारे श्री ब्रजेश जू के केश घुंघराले है॥५९॥