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अथ श्री कृष्णाष्टक

कवित्त

नील मसी जिनके बदन पर जेवदारी। सरुसा तमाम कद आलम पसंद है।
एक दरत्त बीच छड़ी गुलोको गमकदार। बंसरी हुदरत्तगोया जिगरौं का फंद है।
ग्वाल कवि यारों को खिलाता आपखेलता है। जरे मिली जुल्फगोया मार मुनि का बंद है।
चार सर वाले से कारिदें है जिसी के वही। वंदें पें मेहरबान नजर बुलंद है॥१॥

कवित्त

जरै की जलूसन में लोटता हमेंसा रहै। सीमजर गौहर का आप षक संद है।
जिसके ख्याल में खलफ गिर्फतार हुआ। गितार वही माके दस्तफंद है।
ग्वाल कवि जिसने चलाया आफताब तिसें। गोपियां सिखाती रफतार हरचंद है।
चार सरवाले से कारिंदे है जिसीके वही। वंदे पे मेहरबान नजर बुलंद है॥२॥

कवित्त

सुरखी निहायत कदम जिसके को देख। कीजियें निसार इस्क पेंचन का फंद है।
गोल महताब से नाखून जिसके है दस। वक्त हर तौर का अजाइब पसंद है।
ग्वाल कवि जो कि नहिं आता है तसौअर में अरमें वहीज सुधा की दुआ गोद में सवंद है
चार सरवाले से कारिदें है जिसीके वही। बंदे पे मेहरवान नजर-बुलंद है॥३॥

कवित्त

यार जो सफेद है हजार सरवाला आला। जिसको पलंग करि सोता सोख बंद है।
जिस्फे तेई खोफ क्याथा काली नाथ ने पैमारो। वह तो खिलौना सा बिलाया जी पसंद है।
ग्वाल कवि जिसे पूतनाका दूध पीना क्या था। जहरी कमाल सो कि जिस्का हुक्म बंद है।
चार सरवाले से कारिदे है जिसीके वही। वंदे में मेहरबान नजर बुलंद है॥४॥

कवित्त

सर मुकुट मोर पर का कपाल खुला। कानों में जमुरंद बडाव जेव बंद है।
गजरें गुलों के गले गौहर अमेज तेज। रंगा मेज तन पर झलकति चंद है।
ग्वाल कवि जिसके जिगर पर दौलत का। और भ्रम कदमौका वक्त नूरबंद है।
चार सरवाले से कारिंदे है जिसीके कही। वंदे में मेहरबान नजर बुलंद है॥५॥