कवित्त
गीधे गीध तारिके सुतारिकै उतारिक जू। धारिकैं हिये में निज बात जटि जायगी।
तारिकें अवधि करी अवधि सुतारिबे को। विपति विदारिबे की फांस कटि जायगी।
ग्वाल कवि सहज न तारिबो मारौ, गिनौ। कठिन परेंगी पाप पांति पढ़ि जायगी।
यातें जो न तारिहों तिहारी सोह रघुनाथ। अधम उधारिवे कों साख घटि जायगी॥६॥
कवित्त
जोइ जोइ जायन को भायन भयेई रहें। लोयन लगालग में क्युष बिसारेंई।
लागे जोग जप में न तप अनुरागे कभू। लागे रूप अप में सु पेरन आ परेंई।
ग्वाल कवि यातें तुम संकित न हूँणे नाथ। नाम राखिवे है तो परेगी पेज पारेंईं।
टारे ना बनेगी अब अरेना बनेगी बात। धारेई बनेगी जी बनेमी बाज तारेई॥७॥
कवित्त
वीरता लावेंगे रघुवीर जू तिहारी अब। कैसे कृपाकारी औ कटैया भवफंद हो।
तोरि डारि मैंने तो मरजादा वादा बिन। तुम तो मरजादा पुरुषोत्तम सु छेद हो।
ग्वाल कवि परम पतित प्रन पार यो में तो। पावन पतित तुव नाम सुखकंद हो।
मैं तो दीनराज तुम दीनानाथ रघुनाथ। मैं तो दुतिमंद तुम रामचंद चंद हो॥८॥
इति श्री रामाष्टक