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४८ : भक्तभावन
 

कवित्त

एरे नग नांगे कहा काया को सँवारे नित। ताया तात मायाजानि छाया हितू कोईना।
कालीको पुरान सो सुन्यो न कभू कान देके। मान में समान्यो भी कुमति रेख धोईना।
ग्वाल कवि जानी है अजानी क्यों बनत अरे। पानी भयो कौन सो विचार आस खोईना।
धिक धिक जीवन जनम जोग जग जोयें। ज्वाला जगदंबिका की जोति मिय जोईना।३।

कवित्त

काम तखर कामधेनु चारु चितामनि। कामना के पूरक इन्है ही पहिचान सब।
तेऊ कुल कामना कलित नित जाँचे तुम्हें। सांचे दरबार मिले मांगे मुहदान सब।
ग्वाल कवि एई उपमान है जहां न ऐसो। बान देन रावरी लुटावे जग खान सब।
याते राजरानी महरानी मात ज्वाला जोति। आप सी तो आप ही हो गावत पुरान सब।७।

कवित्त

एकमुखी है के मुनि मानस मुदित कीने। छिन्नमुखी के धार श्रोणित की दई तें।
भूमिमुखी द्वे के राक बीज निरबीज कियो। बगलामुखी है अरि बुद्धि बद्ध लई तें।
ग्वाल कबि तू ही सौम्य मुखी औ करालमुखी। मोहमुखी तू ही जो मनंत मुंखी ठई तें।
कलि कलुषी के तारिबे को सखी पारिने को। जाहर जाहूर ज्वाला मुखी जग भई ते‌।८।

इति श्री ज्वालाष्टक