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अथ पहिला गणेशाष्टक

कवित्त

मूसा के सवारन सवार दुख वृंदन के। जाके ध्यान किये नशे पापको पहार है।
पुष्ट पुष्ट पाय मंजु मुख और पिंडुरी है। जैसो ही सुठार जंघ कटि इक सार है।
ग्वाल कवि कहे तैसी तोंद थूल थिरकत। उरभुज तुण्ड शीश शोभा को अगाह है।
रीझे बार बार बार लावें नहि एको बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥१॥

कवित्त

गौरिजू के नंदन है विधन निकंदन है। चाटे चारु चंदन है शोभा के अगार है।
सिंदूरते सजित सकल तन तेजदार। चूअत कपोल मद झार विसतार है।
ग्वाल कवि रवि कीसी किरन हजार छुटे। सुंडा दंड फैलन फिरनि बेसुमार है।
रोझें बार बार बार लावै नहि एका बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार ह॥२॥

कवित्त

गनन के नायक है दासन सहायक है। दुष्टन के नासक है सुखमा भंडार है।
द्वितीया को चन्द जगदंब राजे मस्तक पे। भौरन को वृंद गंड मंडित महार है।
ग्वाल कवि कहे भुजदंड चार चारु जाके। उचित अखंड बलवंड बेसुमार है।
रीझे बार बार बार लावें नहिं ऐको बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥३॥

कवित्त

पूत पंच आनन के भाई षट आनन के। मुकट सुजानन के छबि के भंडार है।
फूलन की माले उर शोभित विशाले हाले। चाले मंद मंद तरु डारत विदारे है।
ग्वाल कवि सेवक के शत्रुन को छार करें। पार करें भव तें दयालता हजार है।
रीझें बार बार बार लावं नहिं एको बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥४॥

कवित्त

परशुराम जू को जुद्ध माहि गर्व भंजि डार्यो। भंजि डार्यो अंग कर्यो क्रुद्ध विकरार है।
वीरभद्र आदिक अनंत गन ताबे रहे। दाबे रहे सबको पराक्रम भंडार है।
ग्वाल कवि कहे व्यासदेवजू के सुखकारी। बनिके लिखारो कियो अति उपकार है।
रीझे बार बार बार लावें नहिं एको बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥५॥

कवित्त

संकट विनासन है तेज के प्रकाशन है। सुमन सिंघासन है शास्त्र के अगार है।
एकदंत बलवंत छविवंत छाजि रह्यो। गाजि रह्यो तीनों लोक माहि सुख सार है
ग्वाल कवि कहे जाकी चाँदनी चहुँधा चारु। चाँदनी न होय सर अति उजियार है।
रोछे बार बार बार लावें नहि एको बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥६॥