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५० : भक्तभावन
 

कवित्त


सोलतान पास जाके लंबो है उदर जाको। तीन लोक संपत्ति को पूरन भंडार है।
वेदन में शास्त्रन में पूरन पुरानन में। गज मुख गाइयत आनंद अगार है।
ग्वाल कवि कहे सर्व वेदन विदारन है। पारन है पैज के कृपाल बेसुमार है।
रीझें बार बार बार लावें नहिं एको बार। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥७॥

कवित्त


आदि शुभ काजन के पूजन परम जाको। पारवती जू को प्यार पुञ्ज को पहार है।
प्रभा प्रभाकर की परास्त सी भई ही जान। पेखि पेखि जाको प्रभापुञ्ज विसतार है।
ग्वाल कवि भलन की जाहर जलूस पारे। चूसडारे चिंता देंय मोह पारावार है।
रीझें बार बार बार लावें नहिं एको बा। ऐसो को उदार जग महिमा अपार है॥८॥

इति पहिला गणेशाष्टक