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अथ देवतान की स्तुति : ५७
 


कवित्त

लच्छ लच्छ लच्छित अलच्छन में लच्छ तुही। लच्छन में लच्छ लच्छ लच्छन में तेरो सब।
जच्छ जच्छ दच्छन में दच्छन प्रदच्छन में। पच्छिन में पच्छ पच्छ राज पच्छ तेरो सब।
ग्वाल कबि भिच्छुक दरस पद पच्छक कों। रच्छक अपच्छिन अकच्छ कच्छ धेरो जब।
स्वच्छ स्वच्छ वरद प्रतच्छ लच्छ लच्छन में। दच्छन में कालिकासु अच्छ अच्छ हेरो अब॥२४॥

कवित्त

छामा है छिने कही में दैत्यन को खामा करे। आदि मध्य परिनामा दुष्टन विहालिका।
जामा जिन धाम्यो जब पालिवे को नेक नामा। देवन को विश रामा पूर प्रन पालिका।
सामा भुक्ति मुक्ति की इनामा कवि ग्वाल जाके। धामा महातेज को अछिन्न राशि मालिका।
वामा वामदेव की प्रनामा करे जग ताहि। गिर के शिखिर अभिरामा स्यामा कालिका॥२५॥

श्री मनसा भवानीजी के कवित्त

राजे गिरि रूप छवि छाजे मंजु मंदिर में। साजे चहुँ ओरन में लीला जो पुरानी है।
विप्रन की मंडली करत धुनि वेदन की। वेदन की नामक कमंडलो बखानी है।
ग्वाल कवि घंटन की झाँझन की झालर की। नौवत निनादन की धुंध मन मानी ह।
लाख लाख वेर मन साख भरे एक यही। मनसा पुजाइबे को मनसा भवानी है॥२६॥

नैना देवी के कवित्त

मेरु सो उत्तंग गिरि शृंग में विराजमान। जाके चहुँआन भई सतसद सेवी है।
श्री गुविंद सिंघ को दियो है वरदान जिन। भयो पंथ खालसा प्रसिद्ध अति जेवी है।
ग्वाल कवि जाके दरस किये अति हर्ष होत। अघ ओघ संकट अनेक हरि लेवी है।
भुक्ति पद लेना तो भजहु दिन रैना सब। आंनद की सैना जग ऐना नैनादेवी है॥२७॥

देवीजी के कवित्त

किलकि किलकि कूदि कूदि के चिलक भरी। बालचंद तिलक ललक भाव भरियें।
पान के सुमद इध असुर गरघ करि। इध करि डारे वलो वघ इक धरियं।
ग्वाल कवि सिंघ को सि प्रसी दराज ढूंक। सुनि सुनि भये टंक भ्रंक अनुसरियें।
तेज अति वद्धंनी कंपदेनी विदित ऐसी। महिषासुर मर्दनी को ध्यान नित करिये॥२८॥

कवित्त

एक कर माला इक प्याला करबाला ऐक। एक सों मरोडी असुरेस शृङ्ग वंकटी।
वामकर चक्र चमं शंख एक धनुवान। मस्तक द्विजेश गले माला आला कंकटी।
ग्वाल कवि उन चहुँरूपा धार्यो तरु मार्यो। पाछेते जुट्यो हे सिंध दूके झार झंकटो।
अंकटी जहाँ बीच जाहर असंकटी है। महिषासुर मर्दनी कपर्दनी अंतकटी॥२९॥