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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन

दोहा

ग्रीष्म पावस शरद हिम। शिशिर बहुरि रितु राज।
ये षट रितु बरनन करत। वांचि बढे सुख साज॥१॥

ग्रीष्म ऋतु वर्णन
कवित्त

पूरन प्रचंड मारतंड की मयूखे मंड। जारे ब्रह्मांड अंड डारे पंख धरियें।
सूर्य तन छूपे बिन धूये की अगिन जेसी। चूये स्वेद बंद दुंद धारे अनिसरियें।
ग्वाल कवि जेठी जेठ मास की जला कनतें। प्यास की सलानक तें ऐसी चित्त शरियें।
कुण्ड पियें कूप पियें सरपिये नदपियें। सिंधुपिये हिमपिये पीयवोई करियें॥२॥

कवित्त

ग्रीषम की गजब की है धूप धाम धाम। गरमी झुकी है जाम जाम अति तापिनी।
भीजे खजबीजन झुलेहून सखात स्वेद। गातन सुहात वात दावा सी डरापिनी।
ग्वाल कवि कहे कोरे कुंभनते कूपनतें। लेते जलधार वारचार मुख थापिनी।
जब पियो तब पियो अब पियो फेर अब। पीवत हू पीवत बुझे न प्यास पापिनी॥३॥

कवित्त

ग्रीष्म के भान को बढ्यो है बे प्रमान तेज। दिश दिश दीरघ दबागी अरि गई है।
सोत भज्यो चंदन तें चंद्रमा कपूर हूतें। खस वीजना हू तें भभकि भरि गई है।
ग्वाल कवि कहे फेर जल ते कमल हूतें। थल के सुतल हुतें सीवा झरिगई है।
शशि को न जानौ सेत जार दियो बार बार। ह्वै गयो अंगार तापें छार परि गई है॥४॥

कवित्त

मेष वृष तरनित चाबन के त्रासन तें। शीतलाई सब तहखानन में ढली है।
तजि तहखाने गई सरसर तगिकंज। कंजतजि चंदन कपूर पूर पली है।
ग्वाल कवि व्हांतें चंद में ह्वै चांदनी में गई। चांदनी ते सोरा चले जल मांहि रली है।
सोरा जल हूते धसी ओरा फिर ओरा तजि। बोराबोर ह्वैकरि हिमाचल में गली है॥५॥

सवैया

गरमी अति धूप ने कीनी हुती। फिर लूयें चले न जुझे तो जुझे।
अनुमान में आवत एक यही अरु। और कों ओर सुझे तो सुझे।
कवि ग्वाल अगस्ति की शक्ति छई। यह ईसु रही रुझे तो रुझे।
अवनी की नदी सब पी लइयें। नभ गंगते प्यास बुझे तो बुझे॥६॥