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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ६१
 


कवित्त

सिंधु ते कढ़ी है किधों बाडवा अनल अत्र। दावा ओ जहर मिलि कीनी ताप भर की।
कैधों महांरुद्रजू के तीसरे विलोचन की। खुलन लगी है कहूँ कोर तेज तरकी।
ग्वाल कवि कहत सुदर्शन को म्यान किधों। उधर्यो कहूँ ते द्रष्टि तीवन है सरकी।
हाय विरही की किलाप विरहागिन की। देत है जराय जेठी धूपं दूपहरकी॥१३॥

सवैया

चन्दन की न चलांकी चले, औ कपूरहु को कहा छीवन है।
खेमे खेर खसके छिरके फिरके चले लूयें मही वन है।
यों कवि ग्वाल परे गरमी जड़ के वड़ा कंद को पीवन है।
जेठ में तो जगजीवन कों इक शीतल जीवन जीवन है॥१४॥

कवित्त

गोरिले गुविंद ने गरूर गार्यो ग्रीषम को। गुलगुले गिदुक गुलाब गरकाने से।
चन्दन कपूर चूर चहल चटक चारु। चौसर चैमेलिन चंगेर चरचाने से।
ग्वाल कवि सुदल सरोजन के सेजसाजि। शीतल सरसनीर हिम सरसानें से।
खासे खभखाने खुसखाने खिझवत खाने। खूब खुसबोइन के खुलिगे खजाने से॥१५॥

कवित्त

जेठ की ज्वाला करे सकल जग मांहि जोर। जारन त्रिलोक जीव व्याकुल कहल में।
देखि यह कौतुक खुलाय के शरद खाने। खूब खस खाने करे चन्दन चहल में।
ग्वाल कवि छूटे जल जन्त्र में गुलाब नोर। विमल बिछौना गुलाब के पहल में।
छाये छबि बृन्द राजे आनंद के कन्द आज। राधिका गुर्विद अरविंद के महल में॥१६॥

कवित्त

फूलनि में फैल फैल राधा स्याम राजत है। फूलन की सेज वंद फूल ठरे तें।
फूलन के फेटा फूल तुर्रा फूल पेचन पे। फूलन के वसन हैसल फूल गरेतें।
ग्वाल कवि फूलन के फोंदा फंदे फंदन में। फूलन चेंगेर फूल फलित वखेरतें।
फूलन के मन्दिर में फूल सी फबनि फबि। फहर फहर फूलमालन कों फेरतें॥१७॥

कवित्त

बरफ शिलान की बिछायत बनाइ करि। सेज संदली में कंज दल पाटियत है।
गालिब गुलाब जल जाल के फुहारे छुटे। खून खसखाने में गुलाब छटियत है।
ग्वाल कवि सुन्दर सुराही फेरि सोरामांहि। ओरा को बनाय रस प्यास डारियत है।
हिमकर आन लासी हिये तें लाय। गोषम की ज्वाला के कशाला कटियत है॥१८॥