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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ६३
 


कवित्त

पावस बहारैं आई रसिक नरेश हेत। लेत अब मौजें महामोद उपदान की।
फूलन की अतरों की केसर लवंगन की। मेवों को मिठाईन को अमल गटान की।
ग्वाल कवि कहे रागरंगन की बुंदन की। शोरी पौन ऊँचिये अटान पे घटान को।
बिजुली छटान को औ छपर खटान को सु। रंगद्युपरान को प्रिया के लिपटान की॥२५॥

कवित्त

वीर वरषा के ये बनाये बने बानिक है। ये बिन बने नहीं बहार पंचवान की।
चंचलासी चंचला है चंदमुखी चंचला सी। साला है सबीन की सजी है सेज सान की।
ग्वाल कवि वलित बगी चाहे सु चाँदनी है। चौसर है मोर है सकोर है हवान की।
दीरघ अटा है अटा ऊपर घटा है धन। घन घटा ऊपर छटा है चंचलान की॥२६॥

कवित्त

जाने जिन वीर पुरहूत को धनुष ब्याहि। साजे जीन पोश रंग रंग को तयारी कों।
चंचलान चोंके ये चमकात लागी चारु। गरजन जानि करे दिव कहु स्यारी कों।
ग्वाल कवि हाल पे उछाल के समुदजात। चाल भरे खूंदन करत राह सारी कों।
घेरी धन हे न पंचवान ते तुरंग भेजे। प्यारे मनभावन के मन की सवारी कों॥२७॥

'कवित्त

भादों की अँध्यारी महा सापिन सी लागे मोहि। बिजुरी विलासिनो चमकत है आय आय।
मोरन को शोर हिय फोरि कें कढत पोर। मेघन की धार लोग शेल सीजु धाय धाय।
ग्वाल कवि प्यारे ये कंदपहू कसाई भये। फूल बन बाग जरावत है भाय भाय।
पापो यह पावस प्रबल दुख देव काज। आयो परदेश में पियारी बिन हाय हाय॥२८॥

कवित्त

प्यारी बिन जानिकें अकेलो पहिचान करें। लियो दाऊ पाबस विदेश में करोर डार।
फूले बन बागन में आंगन लगाई देइ। बेदरद बादर तिन्हें हू अब फोर डार।
ग्वाल कवि शीतल समीर हू के तीर मार। पातकी ये चातको की चोचें चीर घोर डार।
तोर डार इन्द्र को धनुष बांह ऊंची करि। मोरन के कंठ को निशंक ही मरोर डार॥२९॥

कवित्त

झूम झूम चलत चहूँधा धन धूम घूम। सूम सूम भूमि ध्धे ध्धे धूम से दिखात है।
तूलके से पहल पहल पर उठे आवे। महल महल पर सहल सुहात है।
ग्वाल कवि भनत परम तम समकेते। छम छम छम डारें बूंदे दिनरात है।
गरज गये है येक गरजन लागे देखो। गरजत आवे एक गरजत जात है॥३०॥