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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ६५
 

कवित्त

कूकै कोकिलान की कुहू के मंद मोरन की। झूके पौन सूके सेल सरसम मारती।
घन की चमूकैं संग दामिनी हरन कैं हूकें। गरज चहूँ कैं दूकें नाहर सी पारती।
ग्वाल कवि ऊँके औधि चूकैं वाँ वधू के लाल। वेदन अचूके लखि आली किलकारती।
हूकें करे टुकें विरहागिन भभूकें उठि। लूकैं लागि अंबर दिने से फूकें डारती॥३७॥

कवित्त

मान को न बेर सनमान की है बेर प्यारी। मान कह्यो मेरो झुकि झांकतो झमाके सो।
लह लही वैले तेक तरु तरु संग खेलें। मेले वाह वाले ताले छवि के छमाके सो।
ग्वाल कवि बूँदे बूँदे रूँदे विरहीन हीन। नेह की न मूँदे कोन मूँदे झर वाँके सो।
घूमि आये झूमि आये लूमि आये भूमि आये। चूमि चूमि आये धन चंचलै चमाके सो॥३८॥

सवैया

पोढे पलंग पें प्रेमी प्रिया, पपिहान पुकार की दुरै परे।
शीतल मंद सुगन्ध समीर, शरीर छमेन को फूँदे परें।
त्यों कबि ग्वाल घटा घहरे, लहरे बिजुरी तम रून्दें परें।
मेह की बूँदे न मूँदे परे, येन मूँदे परे है न मूँदे परें॥३९॥

कवित्त

जोही जुगनून की जमातें जुर जामिनी में। दामिनी में घूमें घन घेने धुनिघोटी कै।
लोटी रति रंग में पलोटी पाय प्रीतम के। जाऊ जिन प्रात पैन मानी काम कोटी कै।
मोटी मोटी रोटी डारी चिरिन को ग्वालकवि। द्वार दुति ओटी भौंर गुंजे गन्ध रोटी कै।
छोटी रही रेनि नींद नैनन अंगोटी हाय। खोटी करें लागे ये पखेरुलाल चोटी कै॥४०॥

कवित्त

मेरे मनभावन न आये सखी सावन में। ता वन लजी है लता लरजि लरजि कैं।
बूंदें कभू रूदें कभू धारे हिय फार दैया। बीजुरी हू वारे हारी वजि वरजि कैं।
ग्वाल कवि चातको परम पातकी सौं मिलि। मोरहू करत शोर तरजि तरजि कैं।
गरजि गये जे धन गरजि गये हैं भला। फेर ये कसाई आये गरजि गरजि कैं॥४१॥

कवित्त

कारे कारे गुम्मज से गढ से गयंदन सें। नीलम के गीर से ये गरजत आबे है।
धौरे ओ धुवारें घजदार के सें मिले भये। लपके लहरदार लरजत आवे है।
ग्वाल कवि कहे वेश बीजुरी सु वाला लिये। बाला मानिनी को में बरजत आवे है।

सिरजत आवे है सँजोगिने सनेह सुख। हुकम अदूलिन को तरजत आवे है॥४२॥