पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१२५

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२५ ----परिपक बुद्धि या पका आदमी दुनियादारी में वे जो चलता-पुरजा कहे जाते हैं, उनमे "पक्का आदमी" ऐसा एक प्रचलित वाक्य है । जिस किसी के लिये यह वाक्य प्रयोग किया जाता है, उसकी यह एक बड़ी तारीफ समझी जाती है, जिसके मतलब यह हुये कि वह मनुष्य संसार के और सब लोगों में किसी बात में किसी से कम नहीं है। यह पदवी उसी को दी जाती है, जो अपने घर गृहस्थी के काम में अच्छी तरह निपुण हो, पुत्र कलत्र, भाई-बन्धु को उसने किसी तरह का क्लेश न पहुंचता हो और बाहरी लोगों के साथ भी हिला-मिला हो। फजूल खर्च न हो, चटोरा न हो, आपदन, टोने-टूक है तो खर्च भी वढा हुश्रा न हो, जिस बात से अपने को सरोकार नहीं उसमें दाल-भात मे मूसलचन्द न बनता हो। सागश यह कि सदा कामकाजी बातों में फंसा रहता हो। संसार में ऐसे को मव कोई पक्का आदमी इसलिये समझते हैं कि इसने अपना जीवन बहुत अच्छी तरह पार किया। अम हम एक दरजा आगे बढ़ते हैं। ऐसे लोगों में यदि कोई इस ढङ्ग का हुआ कि संसार के जितने काम जिसको क्तव्य Dutty कहते हैं, करता ही है, किन्तु किसी एक बात मे उसकी विशेष रुचि है अर्थात् उस मुख्य वस्तु में अपनी विशेष रुचि प्रगट करता है, जैसा टोपी या पगड़ी एक नये ढङ्ग को देगे, कोट एक नए काट-छाँठ का पहनेंगे, साधारण बातचीत में भो, विना कुछ मजाक के न बोलेगे इत्यादि । परिणाम इसका यह होता है कि ऐसे लोग अपने पड़ोसियों में या मित्र-मण्डली में एक लक्ष्य हो जाते हैं। यहाँ तक कि लोग हँ सी-दिल्लगी में उसका नाम ही वैसा रख लेते हैं, अर्थात् फलाने फलानी तरह की पगड़ी या टोपीवाले, इत्यादि-इत्यादि । यदि उनसे