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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१५४

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भट्ट-निवन्धावली । "विवाह वै ब्राह्मणमाजगाम तवाहमस्मि वं मां पालय ।' अनहते मानिने नैवमादा गोपाय मनेियसी तथाहमस्मि । विद्या सानियेत न विद्या म्बरे वपेत् ॥ , ' . - कितने लोग ऐसे हैं जिनके मधुर कोमल शब्दों में मानो फूल , झरते हों । श्रुति-मनोहर उनके वदगजानःसृत पदावलियों के एक एक शब्द पर जी लुभाता है। किन्नु हितने क्टुवादी खल ऐसा अरुन्तुद बोलनेवाले हैं कि वे जन तक दिन में दो-चार वार मर्मताड़न' कर किसी का चित्त न दुखा लें तब तक उन्हें खाना नहीं हजम होता। ऐसे दुष्टों का जन्म ही इसलिये संसार में है कि वे गपने वाग-वज्र से '- दूसरों का हृदय विदीण किया करें। . "अतीव रोपा कटका च वाणी नरस्य चिन्हा नरकागतानाम्।" . वाक्-सयम इसीलिये कहा गया है कि कहीं ऐसा न हो कि कोई शन्द हमारे मुग्द से ऐसा निकल जाय कि उसमे दूमरे के चित्त को . खेद पहुंचे। शील के सागर कितने पुरप-रत्न चारुदत्त-से चारु-चरित्र । ऐसे हैं जो अपना बहुत-सा नुकसान सह लेने हैं; पर लेन-न मे काई ले माथ नहीं पेश आया चाहते और ल वे दूसरे का जी दूंखाते हैं । निश्चय ऐसे लोग महापुरुष ६, स्वर्गभूमि में पाये है और स्वर्ग ग गयेंगे। जो परचित्तानुर जन में लौलीन हैं, उनके समकक्ष मनुष्य- कोटि में ऐसे ही कहीं कोई होंगे। यह परच्छन्दानुस्तेन दैवी गुगा वहीं । । अवकाश पाता है, जो दर्प-दा-ज्वर का ऊष्मा या श्रगाव है।" अहंकारी को कभी गइ बुद्धि होती ही नहीं कि हम किसी चिन को . ' न दुग्गाः ; वरन् परछिद्रान्चारण ही में उसे सुख मिलता है। दूसरे की ऐ जोई वो वह मरने लिये दिल-पहला मानता। अभिमान में देवदूद गौर फरिश्ते भी स्वर्ग से व्युम किये गये । नत्र जिसमें या शैतानी तालत है, उस्का तुलना परनितानुरजक के माथ क्योंकर . हो सकती है। यह पंन्दाइ-ज्वर धनवानों को बहुतायत के साथ सवार'