पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/२१

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कालचक्र का चक्कर

कालचक्र का चक्कर का ब्याह करें। बहू घर मे श्रावै चन्द्रसेनी हार मॅह दिखाई में भेंट कर उसका चाँद-सा मुखडा देख अपना जी जुड़ावें । हमारे सब मनो- रथ सफल हो, बड़ी-से-बडी महफिल साज सात भानि की मिठाई परसें, चार भाई विरादरी का जूठन पड़े, हमारा घर पवित्र हो । वर्षों के पहिले से नगर की प्रसिद्ध वारवनिताओं को बयाना दे दिया गया, ब्याह की तैयारियां हो रही थी कि अचानक ललन को ज्वर पाया, दवा- दारू झार-फूक टोना-टनमन में सैकड़ों रुपये फूक डाला। जरा भी फुरसत न हुई, गिलटी प्रगट हो आई, दो ही तीन दिन में ललन जी जहाँ के थे वही चल बसे। ___बड़ी-गे-बड़ी डिगरी हासिल किये हुये हैं। छात्र-मण्डली में जिनकी कुशाग्र बुद्धि की शोहरत है, बड़ी-बड़ी उमंगे मन मे भरी हुई हैं कि कपीठीशन मे हम विलाइतवालों को अपने नीचे करेंगे, मातृ- भूमि के लिये हम ऐसी कोई बात कर गुज़रें जिसमें भारत के सत्पुत्र कहलावें, आहार विहार को गडबड़ी से एक दिन दो-चार दस्त और कै हुई, दोस्तों ने समझा अजीर्ण है, दौड़ धूप करने लगे, इधर इनका हाल विगाता ही गया, १२ घंटे के भीतर ही समाप्त हो गये। यह किसी ने न समझा कि अन्तक देव ने एक बड़ा भारी कालेज खोल रक्खा है, सर्वविद्या पारगत इनकों वहाँ का प्रोफेसर किया चाहते है। यह न्याय है या अन्याय इसका विचार कभी मन मे न आया; अधम से अधम काम करने में कमी हिचक न हुई; कई लाख और करोड की माया जोड़ने मे बरावर महा अर्थपिशाच रहे याये, फिर भी दिन-रात सोचा करते है, ५० हजार फलाने असामी के बाकी है एक लाख अमुक सेठ के नीचे दवा है और वह टाट पलटने पर है; २५ हजार व्याज का चिथुरूमल धनदास से अब तक न वसूल हुश्रा। ऐसी ही ऐमी चिन्ता में व्यर एक रात को नींद न आई, अधिक शीत के कारण फालिज पा टूटा, जबान बन्द हो गई। मुंह