पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८ भट्ट-निबन्धावली लिखा है-"भावेषु विद्यते देवो तस्मात भावोहि कारणम् ।" भाव अर्थात् विश्वास मे देवता रहते हैं इससे विश्वास ही प्रधान है; कहावत भी ऐसी ही प्रचलित है 'मानो तो देव नही पत्थर " .. • सञ्चा विश्वास जिसे एतबाद कहेंगे अब इस समय हम देखते हैं तो बहुत कम हो गया है. अोर ज्यों-ज्यों तालीम का जोर बढ़ता जायगा, सच्चा विश्वात उच्छिन्न होता चला जायगा। केवल दर्भ और आडंबर बच रहा सो भी कही-कहीं और किसी-किसी में । यही कारण है कि आज-कल के सशोधक रूखी तबियत वाले जिनमे प्रेम और भक्ति का कहीं स्पर्श भी नहीं है, उन्हें चिरकाल का प्रचलित . वर्तमान हिन्दू-धर्म सब ओर से दंभ ही दंभ पँचता है । कदाचित् . ऐसा हो भी क्योंकि मजहब के साथ मक्कारी ने अपना घनिष्ठ संबध जोड़ रखा है, पर धर्मसंबंधी सब दंभ ही दंभ है, हम ऐसा कभी न मानेंगे बल्कि उन्हीं संशोधकों का योड़ा दोष है जिनमें भक्ति का किंचित भी लगाव नहीं है। ___ कृष्णं चैतन्य, महाप्रभु, नानक और कधीर श्रादि पुराने संशोधको और इस समय के सशोधकों में यही बड़ा अन्तर अा गया है। पुराने सशोधक भक्ति, श्रद्धा, प्रेम और विश्वास से पूर्ण थे तो कुछ उन्होंने किया उसग पूर्णतया नकार्य हुये । कृष्ण चैतन्य ने संपूर्ण बनाल को अपना अनुयायी कर डाला गुरु नानक देव ने पक्षाव भर को अपना चेला मूर लिया, बल्लभाचार्य न गुरान को अपना कर डाला; रामानुज स्वामी ने मन्दराज मे अपना पृण प्रभुत्व स्था. पित कर दिखाया । इन दिनों मंशोधक गला फाड़ पा; गली- गनी चिल्लाते फिरते हैं, पर उनके कहने का किसी पर कुछ असर नहीं होता इसलिये कि ये रूखे वैज्ञानिक रन भक्ति, श्रद्धा और सभने विराम यां अपने नहीं मान देते । अन्नसेमी परमात्मा