पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/७२

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५८ . . भट्ट-निबंधावली सरकार को अपने राज की सीमा बढ़ाने की लौ लगी है : रूस को हिन्दुस्तान की लौ लगी है। हमारी लौ लगी है कि किसी उदारचित्त वीर पुरुष के मन मे आ जातः, हम अपना निज 'का प्रेस कर लेते, पत्र चिरस्थायी हो जाता; गुरू जी की लौ लगी है जहाँ तक चेला मु. मुड़ते रहे और पन्थ बढ़ाते जाय । पादरी साहवों की लौ लगी है । कि छत्त-बल-कल, जिस उपाय से बनै, हिन्दुस्तान के लोगों को ईसाई करते र हैं, जिसमें विलायत के बड़े बड़े चेरिटी-फंड को लूटने का सुभोता रहे. हमारी कारगुजारी उन-उन फंड के प्रधान लोगों की निगाह में जेंचती रहे । ब्रह्मास्मि कहनेवालों की लौ लगी है कि हम , निर्वाण पद पा जाय और जनन-मरण के क्लेश से मुक्त हो । इसलिये कि जब हम ब्रह्म हो गये और वह अजन्मा है तन जनन-मरण फिर ' कैसा । ब्रह्मास्मि वाले जिनको मनोनाश हवस का बुझा देना मुख्य उद्देश्य है, वे भी इस लौ लगने की डोर से कसे हुये हैं। तब हम लोग जिन्हें हवस एक दम के लिये नहीं छोड़ती और श्राशापाशशतैर्वद्ध काम-क्रोध-परायण हो रहे हैं उनकी क्या ? अंतर केवल इतना ही है कि जो भते हैं उन्हें भलाई की और लौ लगती है बुरों की बुराई की और 1 श्रादमी का चोला पाय जिसे किसी श लौ न लगी उमका जन्म ही व्यर्थ है। . . सितम्भर ११०१