पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/८४

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७० . भट्ट-निवन्धावली खिचड़ी पकाते तीन-तेरह हो गये। ढोल में पोल देख पहने लगी। - बुढ़ऊ की जो कुछ प्रतिष्ठा और भागवानी थी, सत्र की पोल खुल गई। दफ्तर में काम करते हैं। लोग समझते हैं, ये तो अमुक महसमे के हेड-क्लर्क कुल स्याह-सुफेद के मालिक हैं, २०० या ३०० रुपये महीने में कमाते हैं। इनकी बड़े आराम और चैन से कटती है । यहाँ वाबू साहब मे जो ढोल मे पोल है, यह उनका नी ही जानता है। दफ्तर मे १० से ४ तक कुइलड्डबरी मे हैरान-परेशान बात बात मे सर दप्तर साहब की झिड़की और फटकार की डर, घर में आय फिर वही पिसौनी । एरियर ब्राटअप करते-करते फुचड़ा निकला जाता है। पेन्शन के दिन भी पूरे न होने पाये, बीच ही में हरि शरणं बोल गये। लोगों का देना निकला, घोड़ा-गाड़ी सन नीलाम हो गई । बोल में पोल निकल श्राई । सब लोग समझते है, पण्डितजी बड़े विद्वान् , महात्मा और सच्चरित्र हैं। किसी तरह की सौंझट बिना उठाये घर वैठे गद्दी पुजाते हैं। यह कोई क्या जाने, परिडतजी महाशय के सच्चरित्र में निरी ढोल की पोल है। चेलियों की कटार-सी भी के कटीले कटाक्ष से वेदाग बचे रहना एक ओर रहा, शिष्य-सेवकों का ताव सम्हालना, उनका मन अपनी सूठी में किये रहना क्या कम मुहिम है ? हम लोग समझते हैं, हमारी प्रताप-शालिनी न्याय-शीना गवर्नमेंट के न्याय-युक्त शासन में शेर-प्रकरी एक' बाट पानी पति हैं। प्रजा-मात्र के ज्ञानमान की भरपूर रक्षा है। किसी को किसी पर किसी तरह की जोर-जुलैम की कोई शिकायत नहीं है और वास्तव में ऐसा ही है भी; किन्तु पुलिस का महनमा गवर्नमेंट ने एक ऐसा कायम कर रक्खा है कि जिसमे मुब न्याय और इन्साफ की पोल खुलते देर नहीं होती। जिसमे संशोधन की बड़े-बड़े कर्मचारी सब सब फिकिर कर रहे है, पुलिस कमीशन शुदा ही इसके संशोधन में वृत्त , पर कोई कला नहीं लाती एक छोटा सा कानस्टेबिल भी चादे तो इन्साफ की